झारखण्ड : विपक्ष की राजनीत पद्धति से स्पष्ट है कि उसकी मंशा ही रही है कि झारखण्ड के धरातल पर कोई स्थाई नियोजन नीति प्रभावी तौर पर ना उतरे. ताकि बाहरियों को इसका फायदा मिलता रहे.
रांची : झारखण्ड में बीजेपी शासन के 20 वर्षों के बाहरी समर्थित राजनीति में नियोजन नीति एक ज्वलंत मुद्दा रहा है. भाजपा के रघुवर सरकार में बनी 2016 नियोजन नीति को हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया. हेमन्त सराकार में नियोजन नीति बनाने का प्रयास हुआ. हो सकता है कि इस नियोजन नीति में विधि-व्यवस्था के दृष्टिकोण से कुछ अशुद्धियाँ रही हो, लेकिन यह नियोजन नीति राज्य के मूल वासियों के अधकारों को स्पष्ट रूप से व्याख्याय कर सकती थी.
चूँकि, विपक्ष की राजनीत पद्धति से स्पष्ट है कि उसकी मंशा ही रही है कि झारखण्ड के धरातल पर कोई स्थाई नियोजन नीति प्रभावी तौर पर ना उतरे. इसकी स्पष्ट तस्वीर मौजूदा दौर में हेमन्त सरकार में बनी मूलवासी समर्थित नियोजन नीति को निरस्त करने हेतु उसके दो तरफा प्रयास में दिखा. एक तरफ उसने कोलिजियम साठ-गांठ व बाहरियों के मदद से नियोजन नीति को निरस्त किया तो वहीं 60-40 जैसे मुद्दे के अक्स में मूलवासियों को सुलगाने के प्रयास करती दिख रही है.
सीएम सोरेन मूलवासी युवाओं के न्युक्ति के लिए गंभीर
ज्ञात हो, सीएम हेमन्त सोरेन अपने कार्यकाल के शुरुआती दौर से ही जहां राज्य के मूलवासी युवाओं के न्युक्ति के लिए गंभीर दिखे हैं. तो वहीं विपक्ष सीएम के क़दमों को रोकने हेतु षड्यंत्र करती दिखी है. दरअसल वह झारखण्ड में आदिवासी, महतो व दलित समाज को एक दूसरे से पृथक कर ऐसा करने का प्रयास कर रही है. ज्ञात हो, विस्थापन का अधिकाँश दंश झेल रहे आदिवासी-दलित समुदाय को वह 60-40 के आसरे महतो समाज से अलग करना चाहते हैं.
और बीजेपी अपने आईटी सेल, सोशल मीडिया हैंडल, यूट्यूब, बाहरी कोचिंग इंस्टीटूट और तथाकथित छात्र नेता व मौकापरस्त राजनीतिक दल के साथ मिलकर अपने षड्यंत्र को मूर्त रूप देने का प्रयास कर रही है. ऐसे में गंभीर सवाल है कि झारखण्ड के मूलवासी इस षड्यंत्र को समझते-बुझते भी क्या वह बीजेपी के ट्रैप में फंसेंगे. या फिर हेमन्त सत्ता के साथ मानसिक तौर पर खड़े हो तमाम चुनौतियों के बीच अधिकार संरक्षण का मजबूत नीव रखेंगे.