झारखंडी को नौकरी देने के प्रयास पर कोर्ट के फैसले के आसरे BJP अपना पूर्व के पाप चाहती है धोना 

झारखण्ड : चलने वाले को ही ठेस लग सकती है. जब झारखंडी को नौकरी देने की दिशा में सीएम का मंशा नियोजन नीति में स्पष्ट है तो त्रुटियाँ सुधारी जा सकती है. लेकिन कोर्ट के फैसले के आड़ में bjp का अपने पूर्व के पाप धोने व बाहरियों की मंशा साधने का प्रयास संदिग्ध. 

रांची : हेमन्त सरकार में वर्तमान में बने नियोजन नीति के अक्स में निश्चित रूप से झारखंडी युवाओं को नौकरी देने की मंशा झलकती है. हो सकता है कि कानूनी दृष्टिकोण से इसमें कुछ त्रुटियाँ रह गयी हो. लेकिन मूलवासियों के अधिकार संरक्षण के मद्देनजर सरकार की मंशा तो स्पष्ट है. क्या बीजेपी के कृषि क़ानून में छिपे दीपक के प्रकाश सा सत्य को किसानों ने देखने से इनकार नहीं कर दिया था. नतीजतन उसे वापस लेना पड़ा था.

झारखंडी को नौकरी देने के प्रयास पर कोर्ट के फैसले के आसरे BJP अपना पूर्व के पाप चाहती है धोना 

रही बात नियोजन नीति के त्रुटियो की तो इसमें संशोधन हो सकता है. और हेमन्त सरकार इस दिशा में कदम भी आगे जल्द बढ़ा सकती है. लेकिन, उच्च न्यायालय के फैसले के आसरे बीजेपी अपने पूर्व के सरकारों के पाप धोने को लालायित दिख रही है. राज्य के अधिकार बहारियों को लूटने वाली पार्टी अपने आईटी सेल के माध्यम से राज्य में ऐसा माहौल बनाने का प्रयास कर रही है, मानों वह बाहरियों को नियोजन नीति में सिरे से खारिज करने के झारखंडी प्रयास की भड़ास निकाल रहे हों. 

झारखंडी मूलवासियों को समझना ही पडेगा कि क्या केवल झारखंडियों को नौकरी देने का प्रयास और बाहरियों को नौकरी लूटाना का प्रयास एक ही है. नहीं दोनों अलग-अलग विषय है. हेमन्त सरकार के माशा में झारखण्ड समर्पण है तो बीजेपी की मंशा बाहरियो के अधिकारों का पोषण व् झारखंडियों का अधिकार हनन है. 

ऐसे में जब सीएम की मंशा झारखंडियों के पक्ष में है तो निश्चित रूप से हमें हिम्मत नहीं हारना चाहिए. हमें चुप्प हो जाने या बाहरियों के हिमायती पार्टी के सुर में सुर मिलाने के बजाय, अपने सरकार के मनोबल को बढाते हुए उसे सटीक सुझाव भेजना चाहिए. ताकि झारखण्ड के मूलवासी ठसक के साथ अपना अधिकार पा सके और बाहरी मानसिकता अपने मकसद में कामयाब ना हो सके. 

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