बिरसा हरित ग्राम योजना – लक्ष्य 20 हजार एकड़, उपलब्धि – 26 हजार एकड़

बिरसा हरित ग्राम योजना – राज्य भर में आम, इमली. जामुन, महुआ, नीम, करंज, मुनगा, अर्जुन, गुलमोहर, पीपल, बरगद, नीबू, आंवला, अमरूद, मीठी नीम, सीताफल जैसे फलों की होगी अम्बार

झारखंड सरकार अपनी ऐतिहासिक सांस्कृतिक तरीके से खदेड़ेगा कुपोषण

झारखंड की सांस्कृतिक पहचान ही है जल-जंगल-ज़मीन की रक्षा। झारखंडियों की धर्म-परंपरा, उसकी क्रांति सब उसके प्राकृतिक के साथ रचा-बसा होने का गवाही देती है। झारखंडियों का जल-जंगल-ज़मीन के प्रति प्रेम ही था जिसका भुगतान पूर्व की भाजपा के रघुवर सरकार को सत्ता गवां कर भुगतना पड़ा।

झारखंडियत की एक और उदाहरण इससे भी मिलता है कि जब झारखंड की सत्ता पर झारखंडी मानसिकता विराजमान हुई तो, उसने देश-दुनिया को कैसे प्राकृतिक का संरक्षण कर समाज को कुपोषण जैसे कोढ़ से मुक्ति दिया जा सकता है, सीख दी। राज्य की हेमंत सरकार कोरोना महामारी के दौरान राज्य में वापस आए प्रवासी श्रमिकों की बाढ़ से ना घबराते हुए, उस शक्ति को प्राकृतिक की रक्षा करने के संकल्प की ओर मोड़ा। उस संकल्प का नाम है – “बिरसा हरित ग्राम योजना”  

झारखंड लडेगा कुपोषण से

किसी ने सच ही कहा है कि “नियत नेक हो नियति भी भरपूर मौके देती है।” पूर्व की रघुवर सरकार ने लैंड बैंक बनायी जिसके पीछे की मंशा बड़े या चहेते कॉर्पोरेट के बीच में झारखंड की ज़मीन को विकास के नाम पर लूटाना। लेकिन मौजूदा सरकार लैंडबैंक समेत तमाम गैरमजरुआ ज़मीन में बिरसा हरित ग्राम योजना के अंतर्गत फलदार वृक्ष लगाने के तरफ बढ़ चुकी है। जो आने वाले दिनों में राज्य को भरपूर मात्र में फल प्रदान करेगा और राज्यवासियों को फलों के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनायेगा व सस्ती फल उपलब्ध करायेगा। जिससे इस गरीब राज्य को कुपोषण से लड़ने में अतिरिक्त ताकत मिलेगी।

बिरसा हरित ग्राम योजना पूरे राज्य को संग्रहालय में तब्दील करेगी   

बिरसा हरित ग्राम योजना का लक्ष्य राज्य के दो लाख एकड़ से अधिक अनुपयोगी परती भूमि का वनीकरण करना है। राज्य के सड़कों के दोनों किनारों पर फलदार वृक्ष जब बड़े होकर फल देंगे, न केवल झारखंड के पुराने ऐतिहासिक दिन लौटेंगे। योजना से ग्रामीण तीन वर्ष के बाद 50,000 रुपये की वार्षिक आय भी अर्जित कर सकेंगे। साथ ही योजना के अंतर्गत मनरेगा के तहत 25 करोड़ मानव दिवस का सृजन होगा। योजना के तहत राज्य भर में 10 करोड़ पौधों का लगना पूरे झारखंड को एक प्राकृतिक संग्रहालय में प्रवर्तित कर देगा। देश दुनिया इस क्रान्ति और जन्नत को देखने-महसूस करने के लिए बाध्य हो इस राज्य के तरफ रुख करेगी। 

झारखंड की संस्कृति इस धरोहर न केवल बड़ा करेगी बल्कि संजोएगी भी

हेमंत सरकार का झारखंडी मानसिकता के होने के कारण उसने राज्य की नब्ज़ को पकड़ लिया है। झारखंड की सांस्कृतिक पहचान ही है प्राकृतिक के साथ ताल-मेल बिठा कर प्रेम से जीवन यापन करना। इसलिए सरकार ने योजना में छोटी लेकिन महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान केन्द्रित किया है। बुजुर्गों एवं महिलाओं के अनुभवों को इस संकल्प में समावेश करने के लिए उनकी प्राथमिकता प्रधान तौर रखने के विशेष निर्देश दिए हैं।

झारखंड लडेगा कुपोषण से

इस योजना के तहत 5 लाख परिवारों को 100 पौधे लगाने हेतु दिए जाएंगे। इसकी देखभाल करने की ज़िम्मेदारी ग्रामसभा द्वारा चयनित अति-गरीब एससी, एसटी, भूमिहीन, आदिम जनजाति जैसे परिवारों को दिया जाएगा। साथी ही यह ज़िम्मेदारी तमाम ग्रामीणों की भी होगी। जिससे 3 वर्ष बाद प्रत्येक परिवार को 50 हजार रुपये वार्षिक आमदनी कर सकेंगे। इसके अलावा सरकार अगले 5 वर्ष तक पौधों को सुरक्षित रखने हेतु सहयोग देगी एवं प्रखंड और जिला स्तर पर प्रसंस्करण इकाई की स्थापना करेगी।

परियोजना के संरक्षण के लिए सरकार पौधों को नियमित पानी देना तथा सुरक्षा करना, उनके आसपास ट्री गार्ड अथवा कटीली झाड़ियों की व्यवस्था करना, पौधे के मृत होने की दशा में नया पौधा लगाना होगा। पोधरक्षक जॉब कार्डधारी होने की वजह से उसे नियमानुसार मजदूरी भुगतान तो होगी ही, परियोजना के पूरा होने के बाद उसे लाभ का 50 प्रतिशत अपने पास रखने का अधिकार भी होगा। बचे हुए 50 प्रतिशत पर ग्राम पंचायत का अधिकार होगा।

झारखंड का कुपोषण से लड़ने का नायाब होगा तरीका  

ज्ञात हो कि राज्य के 62% बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। राज्य के कुल कुपोषित बच्चों में से 47% बच्चों में ‘स्टण्टिंग’ पायी गयी है जो कि कुपोषण की वजह से शरीर पर पड़ने वाले अपरिवर्तनीय प्रभावों में से एक है। इसका अर्थ यह है कि इस राज्य की माताएं भी कुपोषण जैसे अभिशाप से अभिशप्त हैं। जिससे आने वाली एक पूरी पीढ़ी, कुपोषण के दुष्प्रभावों से ग्रसित रहने को अभिशप्त है। 

हेमंत सरकार से झारखंड में कुपोषण से लड़ने के लिए एक ठोस व नायाब तेरीका ले कर आयी है। राज्य भर में आम, इमली. जामुन, महुआ, नीम, करंज, मुनगा, अर्जुन, गुलमोहर, पीपल, बरगद, नीबू, आंवला, अमरूद, मीठी नीम, सीताफल, बेर जैसे 10 करोड़ पेड़ बड़ा करेंगे। जो आने वाले वक़्त में झारखंड को निश्चित रूप से कुपोषणमुक्त बनाएगा।  

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