भाजपा जांच टीम कुछ और संकेत देती हुई

भाजपा जांच टीम के मायने

गणतंत्र दिवस की पूर्व पर संध्या पर आज की राजनीति, जहाँ लोकतंत्र के पाठ तले धर्मनिरपेक्षता की बेदी पर संविधान की तिलांजलि देने की सनक साफ़ दिखती है। जो न्याय व अधिकार की नयी परिभाषा को धार्मिक लबादा ओढ़े लोकतांत्रिक मूल्यों को बलि दे, राष्ट्रवाद के बैसाखी के आसरे सत्ता कायम रखने की जोर-आज़माइश करती दिखती है। खुद के लिए सबकुछ स्वाहा कर देने के धुन में उसे यह ख्याल तक न रहा कि वह रावण की तरह अपने सरों (बड़े नेताओं) का भी स्वाहा कर दिया। जिससे संघ के वर्षों की मेहनत पर खड़ी थिंकटैंक की दीवार भी ध्वस्त हो गयी।

निचले पाए के भीतर हो रही यह खामोश उथलपुथल साफ़ इशारा करती है कि हार के हालात में संगठन को जिंदा रखने के सवाल उन्हें डरा रहा है। झारखंड में हार के बाद बाबूलाल जी के तरफ देखना भाजपा की यही सच्चाई तो बयाँ करती है। उस सनक में आज झारखंड जैसे प्रदेश में इतने भी मुट्ठी भर काबिल नेता भी न बचे जिसके आसरे चाईबासा घटना के लिए भाजपा जांच टीम गठ सके, बाहरी नेताओं से काम चलाना पड़ा है। और संघ की हालत इस दौर में भीष्म की तरह बिधा हुआ युद्ध स्थल पर गिरा पड़ा है, जब वह चाहेगा उसकी मौत तभी होगी, हो चला है।

मसलन, झारखंड के कैनवास पर भाजपा ने संघ के सांस्कृतिक आड़ तले आदिवासी समाज को हिंदुत्व का चादर ओढाने प्रयास में, उनके परंपरा, मान्यताएं व उनके तमाम वह तंत्र ध्वस्त कर दिए जो उन्हें संतुलित रखते थे। वह परिस्थितियां आज उनमें टकराव की उत्पन्न कर कर रही है, जिसका आईना है पत्थलगड़ी की घटना। आंकलन करने के बजाय भाजपा जांच टीम गठ नयी सरकार को बदनाम करने का सीधा रास्ता चुन एक तीर से दो शिकारी करना चाहती है। ऐसे नाज़ुक समय में सामाजिक बुद्धिजीवियों को झारखंड के बेहतरी के लिए आगे आते हुए मुख्यमंत्री को उन तमाम आदिवासी संगठनों के मुखियाओं से संवाद कायम करने का सुझाव देना चाहिए।   

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