फासीवादियों के फरमान पर झारखंड सरकार ने 14 हज़ार स्कूल बंद किये  

फासीवादियों के एजेंडे में शिक्षा व संस्कृति में छेड़-छाड़ हमेशा ही ऊपर होता है। इस तथ्य को सीधे इस प्रकार समझ सकते हैं, कम पढ़ी-लिखी स्मृति ईरानी जैसी टीवी ऐक्ट्रेस को मानव संसाधन मंत्रालय में इसीलिए बैठाया जाता है ताकि संघ परिवार अपनी मनमानी बेरोकटोक चला सके। नतीजतन एक तरफ गुजरात सरकार ने जारी फरमान के अनुसार राज्य के 42,000 सरकारी स्कूलों को आदेश दिया कि पूरक साहित्य के तौर पर दीनानाथ बत्रा, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ी संस्था विद्या भारती का मुखिया है, की नौ किताबों के सेट को पढ़ना अनिवार्य करते हुए पाठ्यक्रम में शामिल करें (इस विषय पर बात फिर कभी करेंगे) वहीं दूसरी तरफ झारखंड सरकार को 14 हज़ार स्कूलों को बंद करना पड़ा ताकि इस राज्य के दलित-आदिवासी-मूलवासी, जिनके ज़मीनों के नीचे खनिजों का भंडार है, के बच्चे पढ़-लिखकर चालाक बन इनकी दूकानदारी न बंद कर सके

स्कूलों के मर्जर के नाम पर बंद करने का फायदा यह हुआ कि सरकार नए शिक्षक भारती करने से बच गयी, लेकिन घाटा यह हुआ कि राज्य के 27% बच्चों की पढ़ाई छूट गयी, जो कि झारखंड के लिए विनाशकारी खबर है नेशनल अचीवमेंट सर्वे 2017-18 के अनुसार  27% बच्चों के स्कूल 5 किलोमीटर से दूर हो जाने के कारण उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा है। और यह ड्रॉप आउट की दर भी बढ़ती ही जा रही है। उदाहरण के तौर पर चटनिया के रहने वाले बिरहोर बच्चे जो किसी प्रकार स्कूल जाते थे, मगर अब स्कूल दूर हो जाने के कारण छूट गया। अब ये बच्चे परिजनों के साथ जंगल में लकड़ी चुनते हैं या फिर भीख मांगते हैं। विद्यालय के प्रधानाध्यापक कहते हैं कि वे कई बार बच्चों को दोबारा स्कूल लाने के लिए गाँव गए फिर भी बच्चे नहीं आये। अभिभावक कहते हैं कि स्कूल गांव से दूर है और रास्ते में तेज रफ्तार गाड़ियाँ चलती हैं…बच्चों को स्कूल कैसे भेजें।

मसलन, हर समाज की तरह भारतीय समाज में भी दासप्रथा और सामंती समाज की अच्छी और बुरी दोनों तरह की बुराइयाँ थीं। किसी भी सरकार का कर्तव्य यही होना चाहिये कि फासीवादियों के फरमानों को दरकिनार करते हुए ज्ञान को जाती-पाती व भौगोलिक सीमाओं में कैद न करे बल्कि अच्छाइयों और बुराइयों का द्वन्द्वात्मक विश्लेषण कर समाज के सामने रखे। साथ ही यह किसी कौम की बपौती न मानते हुए मानवता के पक्ष में जो कुछ भी लिखा या रचा गया है उसे साझी धरोहर है। उसे सहेजने और आगे बढ़ाने का काम सरकार के साथ-साथ मानवता के सभी हित चिन्तकों का होना चाहिए। 

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