बदलाव यात्रा झारखण्ड में एक नयी सुबह की आग़ाज: हेमंत सोरेन 

झारखण्ड के विभिन्न‍न हिस्‍सों के गरीब मज़दूर, ग़रीब किसान, युवा व गर्त में जा रहे झारखंडी व्यवसाय के पहरुवे झामुमो ने उनकी आवाज़ बन राज्य के मौजूदा सरकार की जन विरोधी नीतियों के विरुद्ध बदलाव यात्रा के रूप बदलाव का विगुल फूंकने जा रही है। इस पार्टी ने वैसे तो मौजूदा सरकार के विरुद्ध यहाँ के आदिवासी-मूलवासी, गरीब आवाम व युवा के अधिकार के पक्ष में सरकार के शुरूआती काल से ही हस्‍तक्षेप करना शुरू कर दिया था। सीएनटी/एसपीटी के संशोधन काल के वक्त इस दल के सुपीमो नेता प्रतिपक्ष व विधायक खुल कर सामने आए थे। आगे चल कर तो इस दल ने “झारखण्ड संघर्ष यात्रा” रूपी आन्दोलन की आग घूम कर पूरे झारखण्ड में फैलाई। अब एक बार फिर झारखण्ड के उन्हीं दलित, आदिवासी, मूलवासी, ग़रीब व युवा वर्ग के अधिकार की मांग की नुमाइंदगी की शुरुआत इस बदलाव यात्रा के रूप में करने जा रही है।

बदलाव यात्रा के मुख्य पहलू 

  1. झारखण्ड के आने वाली पीढ़ी के मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था के लिए 
  2. युवाओं के लिए बेहतर, सस्ती व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए 
  3. पिछड़ों को 27% आरक्षण की लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने के लिए 
  4. महिलाओं का हक, उनका 50% आरक्षण के लिए 
  5. प्रति वर्ष 5 लाख नौकरियाँ सृजित के लिए 
  6. 25 करोड़ की निविदा पर झारखंडी युवाओं के हक को सुनिश्चित करने के लिए 
  7. निजी क्षेत्रों के रोज़गार में भी स्थानियों के लिए 75% आरक्षण सुनिश्चित करने के लिए 
  8. भूमि अधिग्रहण कानून में हुए संशोधनों के विरुद्ध मजबूत आवाज़ दर्ज करने के लिए

झामुमो के कार्यकारी अद्याक्ष हेमंत सोरेन का इस सम्बन्ध में कहना है कि “सोना झारखण्ड की परिकल्पना में, झामुमो के वर्षों संघर्ष व शहादत के बाद, 2000 में झारखण्ड का निर्माण तो हुआ, लेकिन झामुमो व यहाँ के महापुरुषों ने सोना झारखण्ड के लिए जो सपना देखे थे, वह सपना न केवल पिछले 19 वर्षों में चकनाचूर हुए बल्कि ठीक उसके विपरीत काम हुए – जैसे राज्य के स्कूलों (विद्यालयों) को बंद कर शराब की दुकानें खोली गयी झारखण्ड की आत्मा, इसका सुरक्षा कवच सीएनटी/एसपीटी (CNT/SPT) कानून के साथ तानाशाही तरीके से छेड़-छाड़ किया गया, राज्य के युवाओं-महिलाओं-किसानों व अनुबंधकर्मियों को निरंतर ठगा गया। 

गलत स्थानीय परिभाषित कर यहाँ के युवाओं को न केवल ठगा गया बल्कि उन्हें उनके अधिकारों से महरूम होना पड़ा। यही नहीं बाहरी व चहेते पूँजीपतियों को सस्ती ज़मीन मुहैया कराने के लिए यहाँ व्यवस्थित कॉर्पोरेट घरानों व छोटे व्यवसाइयों की बलि दे दी गयी। इस सरकार ने इस राज्य की स्थिति या बना दी कि लोग भूख से मर गए, बहुतयात संख्या में लोग पलायन को मजबूर हुए। निशिकांत दुबे जी के बयान से यह साबित होता है कि अब यह सरकार तानाशाही तरीके से सीएनटी/एसपीटी को हटाने की जुगत में हैं। मसलन, यह यात्रा हर उन बेजुबानों की ज़ुबान बनेगी जो इस सरकार की नीतियों से त्रस्त हो डरे सहमे हैं। जिन्हें कोई राह नहीं सूझ रहा उन्हें यह बदलाव यात्रा निश्चित रूप से राह दिखायेगी।   

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