अटल क्लिनिक सुबह खुली शाम को बंद, सरकारी अस्पतालों की हालत बदतर  

अटल क्लिनिक पहले दिन हुई बेपटरी

झारखण्ड के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स समेत अन्य सभी सरकारी अस्पतालों व डिस्पेंसरियों की हालत बदतर है। कोई जाँच होता है, कोई नहीं, जाँच करने वाली मशीनें खराब हैं, तो जाँच की मशीनें अब तक उपलब्ध ही नहीं। महज चंद दिनों पहले रिम्स की डायलिसिस मशीन खराब होने के बावजूद डॉक्टर बहादुर ने मरीज़ की डायलिसिस कर दी, नतीजतन चल फिर सकने वाला वह मरीज़ अब जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा है। दवाइयों की सप्लाई भी अब कम हो चुकी है, थोड़ी-बहुत दवाएँ जो आती भी हैं उनका बड़ा हिस्सा स्वास्थ्य विभाग के भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जा रहा है।

यहाँ के अस्पतालों में डॉक्टरों, लैब तकनीशियनों, नर्सों आदि के हज़ारों पद खाली पड़े हैं, जिन्हें भरने में सरकार का कोई रुझान नहीं दिखता। साथ ही प्राइवेट नर्सिंग होम व अस्पतालों का धांधली चरम पर है। झारखण्ड सरकार का यह रवैया बताता है कि ग़रीबों का इलाज़ करने वाली सरकारी अस्पताल यहाँ चले। झारखण्ड सरकार ने एक बार फिर अपनी पार्टी को ग़रीबों का मशीहा साबित करने के लिए अटल क्लिनिक खोला। सुबह मुख्यमंत्री जी ने बड़ी-बड़ी बातें कहते हुए खुद उदघाटन किया और शाम को राजधानी राँची इलाके के कई क्लिनिक खुली ही नहीं और मरीज़ वापिस घर लौट गए।

मसलन, कुल मिलकर देखा जाए सरकार पूरी की व्यवस्था अपने आप में एक बीमारी है जो पूरे झारखंडी समाज को खाए जा रही है। इस व्यवस्था के रहते यहाँ कल्याणकारी कार्य की उम्मीद करना बेमानी है। इनके व्यवस्था में किसी का कल्याण हो सकता है तो केवल पूँजीपतियों का। आज जरूरत कि मुनाफ़े पर टिकी इस मानवद्रोही संवेदनाहीन सरकार के कार्यप्रणाली पर यहीं विराम लगाते हुए झारखंडी चेतना वाली पार्टी का सरकार को सामने लाया जाए जो जनता का लोक स्वराज स्थापित कर सके। केवल तभी इस बीमारी से मरती हुई झारखंडियत को बचाया जा सकता है

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