डॉ. पायल तडवी : जाति उत्पीडन जैसे त्रासदी की एक और शहीद

हमारे समाज के चेहरे पर जाति व्यवस्था और जातिगत उत्पीड़न एक बदनुमा दाग रूपी त्रासदी है और आंकड़ों को देखें तो या साफ़ हो जाता है कि मोदी जी के राज में यह ख़त्म होने के बजाय और भी ज़्यादा सड़ाँध मार रही है। ऐसी बर्बर घटना की ख़बरें केवल महाराष्ट्र से ही नहीं बल्कि पूरे देश से पिछले पांच साल में आयी है। इस श्रेणी में डॉ. पायल तडवी का मामला रोहित बेमुला के बाद दूसरा मामला है जो देश को जाति व्यवस्था जैसे कुरीतियों पर मुँह चिढ़ाती पटल पर उभरी है।

डॉ. पायल तडवी उत्तरी महाराष्ट्र के जलगांव की रहने वाली, बीते बरस मुंबई के टोपीवाला मेडिकल कॉलेज में दाख़िला ले गाइनोकोलॉजी (स्त्री रोग विशेषज्ञ) पीजी की पढ़ाई कर रहीं थीं पश्चिमी महाराष्ट्र के मीराज-सांगली से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की थी उनकी गलती केवल इतनी थी कि वह पिछड़े वर्ग से थीं और उन्हें आरक्षण कोटा के तहत दाख़िला मिली थी ठीक जनादेश आने के एक दिन पहले जाति उत्पीड़न से तंग आकर उन्होंने आत्महत्या कर लीटोपीवाला मेडिकल कॉलेज की तीन वरिष्ठ रेज़िडेंट डॉक्टरों पर आरोप है कि उन्होंने तडवी के ख़िलाफ़ जाति सूचक शब्दों का इस्तेमाल करते हुए उनकी जाति को आधार बनाकर उत्पीड़ित किया, जिससे तंग आकार ही ताडवी को यह कदम उठाना पड़ा

जबकि पिछले दिनों यह साफ़ उभर कर सामने आयी कि सत्ता में बैठी सरकार जहाँ एक तरफ़ अपराधियों पर लगाम लगाने, पुलिस के हाथ खुले होने का ढिंढोरा पीटती रही तो वहीं दूसरी ओर सत्ता द्वारा ही संरक्षण प्राप्त गुण्डों द्वारा किया जाने वाला नंगा नाच इस परदे को नोचकर फासीवादी निज़ाम की बर्बर सच्चाई को उजागर करता दिखा है।  इन दोनों ही घटनाओं से स्पष्ट होता है कि हमारे समाज में जातिवादी मानसिकता की पैठ कितनी गहराई तक है और सत्ता के साथ ही तमाम मध्य जातियों के अमीर जातिवादी वर्चस्व के बर्बरतम रूपों को प्रदर्शित कर रही हैं।

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