चुनाव आयोग अब महात्मा गांधी व बाबा साहब अंबेडकर के नक्शेकदम पर

इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि, ऐसे समय में जब सत्ता एक जगह निहित हो, तो महज चंद दिनों पहले चुनाव आयोग के उठाये गए कदमों ने लोकतांत्रिक व्यवस्था में यकीन रखने वालों को थोड़ी सी सुकून ज़रूर पहुँचाई है, और महात्मा गांधी, बाबा साहब अंबेडकर ने जिस संवैधानिक संस्थाओं पर यकीन किया था उनके उस कल्पना को मज़बूती मिली है और ऐसे वक्त में अगर निर्वाचन आयोग अपने कर्तव्यों की निर्वहन करने की हिम्मत दिखाते हैं तो निश्चित ही यह एक सुखद संकेत है

एक तरफ जहाँ निर्वाचन आयोग ने कल मोदी के बायोपिक के स्क्रीनिंग पर रोक लगा दी तो वहीं न्यायालय में इलेक्टोरल बांड पर चल रहे मुक़दमे में निर्वाचन आयोग ने बांड के खिलाफ पैरवी की। इस मामले में मोदी सरकार चुनाव सुधार के आड़ में गोपनीयता का हवाला देकर इलेक्टोरल बांड को प्रोमोट किया था, लेकिन सच तो यह है बैंक को इलेक्टोरल बांड में प्रयोग होने वाली अल्फ़ा नुमेरिकल कोडिंग के कारण देने वाले और पाने वाले राजनीतिक दल दोनों के ही बारे में पता होता है, सरकार की दलील को झूठ साबित करती है। जबकि माननीय उच्चतम न्यायालय ने दि हिन्दू के रिपोर्ट को गैर कानूनी करार देने वाले वेणुगोपाल के दलील को यह कहते ख़ारिज़ देना कि सबूत चाहे जिस भी माध्यम से आये, अगर उसमे सच्चाई व तथ्य है तो एक्जामिन योग्य है, निस्संदेह सरकार की बद-नीति पर ज़ोरदार प्रहार है।

बहरहाल, चौकीदार व उसके सरकार का यह कहना कि चुनावी बांड के रूप राजनैतिक दलों को धन मुहैया कराने वाले का नाम गोपनीय रखना देश हित में जरूरी है, तो यह समाज के लिए कितना हित कर है देश की जनता फैसला करेगी, लेकिन उसी देश निर्वाचन आयोग व मानीय उचतम न्यायालय इसे गलत मानते हुए इस दिशा में कदम उठता है तो सत्य यही है कि सरकार के मंशे में जरूर खोंट है -इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता।

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