रघुवरजी-स्पीकरजी दोनों महोदय से हेमंत सोरेन ने की इस्तीफे की मांग

 रघुवरजी-स्पीकरजी दोनों से इस्तीफे की मांग 

झारखंड के उच्च न्यायालय ने मौजूदा सरकार के पक्ष लेते हुए जेपीएससी मुख्‍य परीक्षा पर रोक न लगाते हुए करवाने की इजाजत दे दी है। अधिवक्‍ता आरएस मजूमदार ने बताया कि कोर्ट ने इस मामले में किसी तरह का फैसला देने से बचते हुए कहा कि यह गंभीर विषय और इस पर लंबी बहस की जरूरत है। आदेश दिया कि परीक्षा जारी रखा जाए परन्तु उच्‍च न्‍यायालय के बिना आदेश परिणाम (रिजल्‍ट) प्रकाशित न किया जाएगा। इसी के साथ कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई की अगली तिथि 25 फरवरी निर्धारित कर दी है। जबकि परिक्षार्थी सुबह से रांची में शांति पूर्वक बैनर पोसते लिए फैसले के इन्तजार में डेटे थे, परन्तु उन्हें मायूसी हाथ लगी।

ज्ञात हो कि इस मामले को रविश कुमार में प्राइम टाइम में उठाते हुए कटाक्ष किया था कि, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरों को आगे यह रिसर्च करना चाहिए, कि आखिर कैसे सरकार के झारखंड लोक सेवा आयोग जैसे संस्थाएं एक परीक्षा कराने में चार साल यूं ही खपा देती हैं और प्रधान सेवक भारत को विश्व गुरु भी बना देते हैं। झारखंड में सरकारी नौकरियों की परीक्षा कराने वाली संस्था जेपीएससी ने 17 अगस्त 2015 को जिस परीक्षा का विज्ञापन निकाला था वो आज तक पूरी नहीं हुई है…। जबकि अब चुनावों का मौसम है तो वोट की फसल काटने के लिए सरकार झारखंडी नौजवानों का भविष्य टाक पर रखते हुए परीक्षा आनन-फानन में ले रही है।

इधर विधानसभा में सत्‍ता पक्ष और विपक्ष के विधायकों के लगातार विरोध के बीच छठी सिविल सेवा मुख्य परीक्षा 28 जनवरी को एहले सुबह दस बजे रांची के 57 परीक्षा केंद्रों पर शुरू हो गई। विपक्षी दलों ने सदन के अंदर और बाहर JPSC की परीक्षा रद्द करने की मांग की। परन्तु रघुवरजी-स्पीकरजी अपनी हठधर्मिता का प्रदर्शनी करते हुए विपक्ष की एक ना सुनी।

इस मामले को लेकर नेता प्रतिपक्ष हेमत सोरेन काफी दुखी दिखे। उन्होंने कहा कि सरकार ने JPSC को भरष्टाचार का गढ़ बना दिया है। सरकार इसे कठपुतली की तरह नचाते हुए झारखंडी युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है। जेपीएससी के रवैये को देखते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री के साथ–साथ स्पीकर से भी इस्तीफे की मांग की है। जबकि सुखदेव भगत का कहना है की सरकार के पास छात्रों को छोड़ कर अन्य से मिलने का समय ही समय है।

मसलन, भारत और झारखण्ड की यह राष्ट्रवादी सरकार नये रोज़गार पैदा करने के मामले में तो पूरी तरह न सिर्फ फ़ेल है, बल्कि लाखों की संख्या में ख़ाली पदों को भरने में भी नकारा साबित हुई हैं।

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