स्कूलों का विलय झारखंडियों को सस्ता मजदूर बनाने की साजिश

झारखंड में रघुबर सरकार राज्य के प्राथमिक व मध्य विद्यालयों को बंद कर पास के किसी स्कूल में विलय करने की घोषणा की है। इसका एक मात्र कारण इन स्कूलों में छात्रों की संख्या कम होना बताया जा रहा है। लेकिन ये यह नहीं बता रहे कि आखिर इन प्राथमिक और मध्य विद्यालयों में छात्रों की संख्या कम होने वजहें क्या हैं। उन कारणों का अध्ययन किए बगैर ही सरकार स्कूलों को बंद कर रही है।

जैसे- आर्थिक कारण बच्चों के शिक्षा पर काफी हद तक प्रभाव डालता है। परिवार में माता-पिता की आर्थिक स्थिति को जानने की कोशिश होनी चाहिए। परिवार का शिक्षा स्तर कितना है, क्या शिक्षा की महत्व को वह परिवार समझता है। इतना ही नहीं सरकार को यह भी पता लगाना चाहिए कि कहीं माता-पिता छात्रों को घर के कामों में तो नहीं लागते हैं? स्कूल में पठन-पाठन का माहौल कैसा है? छात्रों को पढ़ाने की शैली अच्छी और रूचिकर है भी कि नहीं! आदि…

अनुसूचित जनजाति युवा विचारक रायमुल बांडरा का मानना है कि भाजपा-आजसू की सरकार जानबुझ कर नहीं चाहती कि झारखंडियों को सुलभ और गुणवतायुक्त शिक्षा मिले। जिससे झारखण्ड के प्रगति और उन्नति में वे छात्र-छात्राएं भविष्य में अहम् योगदान कर सकें। अतः एक राजनीकि षड्यंत्र के तहत झारखंडियों को शिक्षा से दूर रखा जाए ताकि वे मुख्यधारा में न आ सके। मतलब यहाँ के आदिवासी और मूलनिवासियों को सस्ता आम मजदूरों में बदला जा सके।

मसलन, इसके विलय के खिलाफ झारखंडी समाज और पारा शिक्षकों के विरोध के एवज में फैसला को वापस लेने के बजाय रघुबर सरकार इस ओर दृढ़ता के साथ बढ़ रही है। सरकार ने प्रथम चरण में 4600 विद्यालयों का विलय किया और दुसरे चरण में 6466 मध्य विद्यालाओं का विलय करने जा रही है। साथ ही रघुबर सरकार यह कह अपना पीठ भी थपथपा रही है कि स्कूलों बंद कर उन्होंने 400 करोड़ बचाई है। साथ ही सरकार यह भी दावा कर रही है कि विद्यालयों में शिक्षकों की संख्या भी बढ़ी है। परन्तु सरकार जनता को यह नही बता रही है कि विद्यालयों में छात्र-शिक्षक का अनुपात क्या है? इन स्थितियों या कहना कि इससे पठन-पाठन पर सकारातमक प्रभाव पड़ रहा है सरासर गलत होगा!

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