आजसू सत्ता के लिए कुछ भी बोलेगी, कुछ भी करेगी!

शायद पुरे भारत में एक ही ऐसी क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी है जो सत्ता सुख के लिए कुछ भी बोल लेती है। साथ ही राजनीतिक लाभ के लिए कुछ भी करने को तैयार रहती है। सत्ता में बने रहने के लिए  सत्ता का खेल इनके सुप्रीमो एवं नेताओं से सीखा जा सकता है। सत्ता सुख भोगते हुए सत्ता का विरोध करना इस दल की खासियत है। इशारों में आसानी से समझा जा सकता है कि यहाँ आजसू पार्टी की बात हो रही है।

यह भी समझा जा सकता है कि आजसू द्वारा सरकार में रहकर सरकार का विरोध केवल जनता के बीच भ्रम फैलाने से अधिक और कुछ नहीं हो सकता। आजसू एनडीए की सहयोगी दल है और भाजपा को समर्थन देने के एवज में इस पार्टी के विधायक चंद्रप्रकाश चौधरी को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। गठबंधन की सरकार में कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के तहत आपस में सहमती निश्चित रूप से होगी। अगर सरकार से कोई नाराजगी है या अपनी मांग मनवानी है तो साथ मिल बैठकर समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करना चाहिए। जबकि सदन में चुप्पी साधे रहते हैं और सड़क पर  डींगे हांकते हैं। अगर सत्ता मोह नहीं है तो सत्ता सुख का त्याग कर इन्हें आन्दोलन की राह पकड़नी चाहिए। आजसू द्वारा दोनों काम साथ-साथ करना झारखंडी जनता को बेवकूफ बनाना नहीं तो और क्या है।

भाजपा-आजसू का यह बेमेल सरकार झारखंडियों को उलझन में डाल इन्हें उल्लू बनाने का प्रयास कर रही है। चार साल सत्ता के स्वाद चखने के बाद आज आजसू को याद आ रहा है कि झारखण्ड में किस पार्टी ने ओबीसी के लिए 27%  आरक्षण को घटाकर 14% कर दिया गया है। जब आरक्षण घटाया गया तब आजसू कैबिनेट में रहते हुए भी चुप क्यूँ रही? उसी वक़्त आवाज उठाना चाहिए था।

सवाल यह भी उठता है कि आजसू साफ़-साफ़ क्यूँ नहीं कहती कि भाजपा ने ही झारखण्ड के ओबीसी आरक्षण को  27% से घटाकर 14% कर दिया है। साथ ही ओबीसी को राज्य में केवल 14 प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है, जबकि राज्य में इनकी आबादी करीब 46 प्रतिशत है। रघुबर दास ने में विधानसभा में कहा था कि राज्य में सरकार की आरक्षण कोटा बढ़ाने की कोई योजना नहीं है।

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