रघुबर दास के नेक इरादे [Fake इरादे, जुमले बुलंद, विनाश हो रहा रघुबर का झारखंड]

रघुबर दास के के कुछ नेक इरादों का सच

किसी भी राज्य सरकार के इरादों को नेक तब कहा जा सकता है, जब उसके माध्यम से जनसाधारण का भला हो, युवाओं को रोजगार मिले, वहाँ के आदिवासी मूलवासियों के हक़ के साथ समझौता न हो। परन्तु इन सिद्धांतों के ठीक उलट, भाजपा द्वारा पहली बार रघुबर दास के रूप में झारखंडी जनता को एक बाहरी मुख्यमंत्री थोपा गया। जिसे न तो झारखंड की प्रकृति और संस्कृति से लेना देना है। और न ही यहाँ के आदिवासी-मूलवासियों से इनका कोई सरोकार है। ये केवल बैनरों और पोस्टरों के माध्यम से अपने प्रतिपादित कुनीतियों को नेक दिखाने में लगे हैं। इन्हीं विषयों पर चर्चा करने के उद्देश्य से रघुबर दास के कुछ नेक इरादों से आपको रूबरू करते हैं।

  • भूमि संसोधन बिल(CNT/SPT ACT)

सामन्ती प्रथा को दुबारा स्थापित करने के लिए रघुबर सरकार ने विकास का हवाला देकर भूमि संसोधन बिल लागू किया है। इसके तहत अब दलित आदिवासियों की जमीनें कोई भी खरीद सकता है। बेशक अब वो दौर फिर से आने की पूरी गुंजाईश दिख रही है जिसमे बड़े तबके के लोग इनकी ज़मीने एक हंडिया दारु देने की दलील देकर हड़प लिया करती थी।

  • घटिया स्थानीय नीति

रघुबर दास के शासन में लागू की गई घटिया स्थानीय नीति के कारण झारखंड के संसाधनों पर धीरे-धीरे बाहरी लोगों का दबदबा बढ़ता जा रहा है। इसी का परिणाम है कि प्लस टू (इंटरमीडिएट) विद्यालयों के लिए शिक्षक नियुक्ति में 75% राज्य के बाहर के अभ्यर्थी नियोजित किए गये। ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो इस बाहरी मुख्यमंत्री का एक मात्र उद्देश्य हो गया हो कि किसी तरह राज्य में बाहर के लोगों को स्थापित किया जाय, ताकि इनका वोट बैंक बढ़ता रहे।

  • मोमेंटम झारखंड

झारखण्ड में रघुवर सरकार द्वारा आयोजित ‘ मोमेंटम झारखण्ड ’ के तहत दावा किया गया था कि तीन लाख करोड़ रुपये के निवेश इस प्रदेश में होगा। लेकिन परिणाम के तौर पर कहा जा सकता है कि सरकार की यह योजना पूरी तरह विफल होने के स्थ-साथ कटघरे में खड़ी दिखती है। अब यह बात की पुष्टि हो रही है कि इस सरकार ने आनन-फानन में बिना जाँच के कई ऐसे कम्पनियों के साथ एमओयू साईन किया। ऐसा प्रतीत होता है कि यह कंपनियां केवल एमओयू साईन करने के लिए ही अस्तित्व में आयी, क्योंकि इसके अंतर्गत कई ऐसी कंपनियाँ हैं जिसका रजिस्ट्रेशन महज चंद दिनों या चंद सप्ताह पहले ही हुआ है। 

  • लैंड बैंक

लैंड बैंक के अंतर्गत सरकार अब तक 1056137  एकड़ भूमि अधिग्रहित कर चुकी है। साथ ही लगभग 7 हजार हेक्टेयर वन भूमि का अधिग्रहण सरकारी योजनाओं के नाम पर कर लिया है। जबकि निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों द्वारा लगभग 14 हजार हेक्टेयर वन भूमि अधिग्रहण किया गया है। इंडियन स्टेट ऑफ़ फोरेस्ट रिपोर्ट (ISFR) के अनुसार खुले वन क्षेत्रों में 942.12 हेक्टेयर के दर से नगण्य रूप से वृद्धि हुई है, परन्तु अत्यधिक घने वनों में 70659 हेक्टेयर एवं सामान्य घने वनों में 141318 हेक्टेयर का भारी मात्रा में विनाश हुआ है।

  • स्मार्ट सिटी

रघुबर दास के स्मार्ट सिटी योजना के तहत अब तक हुए कार्य भले ही आंकड़ों में ऊपर जा रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत सोच से कोसों दूर है। इसकी सूची में शामिल शहर तो स्मार्ट नहीं हुए हैं, लेकिन ‘स्मार्ट’ योजनाबद्ध रणनीति के तहत लोगों से पोल करवाकर ‘डिजिटल’ रिकार्ड्स में अपनी उपलब्धियों के ढोल पीट रहे हैं। लेकिन राज्य में स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में न तो साफ नीयत नजर आई और न ही सही विकास हुआ।लेकिन इसके विपरीत स्मार्ट सिटी के आड़ में गाँवों को नजरअंदाज किया जा रहा है। शौचालय, सफाई, साफ पानी, नियमित बिजली, सड़क जैसी मूलभूत सुविधाएं भी गाँवों को नसीब नहीं हो सकीं है।

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