झारक्राफ्ट में रेणु गोपीनाथ पणिक्कर की नियुक्ति, अपने आप में एक सवाल

रेणु गोपीनाथ पणिक्कर की नियुक्ति का सच

झारखण्ड में रघुवर दास की सरकार आने के बाद पहली बार झारक्राफ्ट में मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी(CEO) का पद सृजित कर रेणु गोपीनाथ पणिक्कर को पदभार दिया गया था। पहला सवाल है आखिर क्यों? अचानक झारक्राफ्ट में नये पद का सृजन करने को सरकार को क्या जरुरत आ पड़ी थी? किस प्रक्रिया के तहत सरकार द्वारा सृजित नवीनतम पदभार के लिए इनका चयन किया गया था।और दूसरा यह कि आखिर ये कौन हैं? इतने बड़े विभाग की CEO रहने के बावजूद वेब-साइटों पर घंटों बिताने के बाद भी किसी को इनके बारे में कुछ भी जानकारी नहीं मिलती है। इन्हीं वजहों से सरकार द्वारा रेणु गोपीनाथ पणिक्कर की नियुक्ति सवालिया घेरे में आ जाती है।

सूचना अधिकार के माध्यम से जो कुछ भी रेणु गोपीनाथ पणिक्कर व उनकी नियुक्ति के बारे जानकारी मिलती है, उसके हिसाब से रघुबर सरकार की नियुक्ति की चयन प्रक्रिया संदेहास्पद दिखती है। जो निम्नलिखित है:-

  • रेणु जी जमशेदपुर की रहने वाली है।
  • इनका चयन CEO पद के लिए सीधे इंटरव्यू द्वारा हुआ था।
  • इनकी शैक्षणिक योग्यता स्नातक (A), बिना किसी कार्य अनुभव के था।
  • हालांकि ये मोहतरमा ने वेब-साईट न्यूज़ पोर्टल के माध्यम से दावा किया था कि ये कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से जुड़ी रही है पर उसकी कोई जानकारी जनसूचना प्राधिकार कार्यालय के पास नहीं है।
  • सबसे महत्वपूर्ण झारक्राफ्ट के सीइओ रहने के बावजूद इनके पैतृक स्थान, पढाई-लिखाई, फेसबुक प्रोफाइल, ट्वीटर हैंडल आदि का कहीं कुछ जिक्र नहीं मिलता जो संदिग्ध है।

अब सवाल उठता है कि रघुबर सरकार को झारक्राफ्ट के CEO बहाल करने की क्या जल्दीबाजी थी कि सामान्य स्नातक की डिग्री वाली रेणु गोपीनाथ पणिक्कर को किसी कार्य अनुभव के बिना ही नियुक्त कर लिया था। एक से एक उच्च शिक्षित और अनुभवी उम्मीदवारों को नजरअंदाज किया गया। मानो रेणु जी को किसी भी सूरत में नियुक्त करना सरकार का उद्देश्य था, पद की बहाली और इंटरव्यू जैसे मात्र एक छलावा हो।

भले ही रघुबर सरकार इस पूरे प्रकरण में चुप्पी साधी रही। परन्तु कम्बल घोटाले में पूर्व झारक्राफ्ट CEO की संलिप्तता नियुक्ति प्रक्रिया में दाल में कुछ काले की ओर इशारा करता है। वरना कम्बल घोटाला सामने आने के बाद थोड़े न इतनी आसानी से इस्तीफ़ा देकर बच निकलती। थोड़े दिनों में यह मामला भी आसानी से दबा दिया गया। ऐसे में साफ़ जाहिर होता है की नियुक्ति से लेकर घोटाले तक पूरे प्रकरण में शायद कहीं न कहीं शुरुआत से रेणु गोपीनाथ पणिक्कर पर सरकार का हाथ रहा है।

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