युवा झारखंड स्थापना दिवस के मौके पर सरकार की ख़ैर-ख़बर

युवा झारखंड स्थापना दिवस पर झारखंड सरकार की स्थिति

राघुबर सरकार अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले ही युवा झारखंड स्थापना दिवस समारोह के पूर्व ही पूरी तरह हाफ़ने लगी है। वह भी तब, जबकि सारी जांच एजेंसियाँ इनकी जेब में हैं और इक्की-दुक्की छोड़ सम्पूर्ण मीडिया जगत भी इनकी गोद में रखी मलाई में सराबोर है। इसके बावजूद काले करतूतों का मैला बदबू करने लगा है। इस सरकार की करतूतों की गन्दगी हद से ज़्यादा बढ़ जाने के कारण इनके ध्यान भटकाने के तमाम हथकण्डों और ढाँकने-तोपने वाला रामनामी का दुसाला छोटा पड़ गया है और इनकी नीतियों का मैला बाहर आ बहने लगा है।

सवाल है कि, अलग झारखंड जब अपने युवा अवस्था या फिर अपने उम्र के अठारवें वर्ष में पीछे मुड़ कर देखता है तो क्या दूर-दूर तक हमें हमारे शहीदों के सपनों, उनके अरमानो वाला झारखंड देखने को मिलता है? जवाब स्पष्ट है – नहीं! तो फिर क्या दिखता हैं?

आज भी हम ख़ुद को उसी स्थिति में पाते हैं, जहाँ ज़मीन गवांते लोग रोते-कलपते एवं डरे-सहमे दिखते है। यहाँ की वन-भूमि एवं खनिज सम्पदा गै़र-कानूनी तरीके से पूंजीपतियों द्वारा लुटते देखी जा सकती है। यहाँ स्थानीय नीति ऐसी बनायी गयी है जिसमे घरवालों के बजाय बाहर वालों के लिए नौकरी पाना ज़्यादा सुलभ है। जहाँ आज भी झारखंडी शिक्षक वर्ग (पारा शिक्षक) अपनी अस्तित्व को लेकर  फ़रियाद करने को विवश हैं, तो वहीं राज्य के बच्चे (भविष्य) अपनी शिक्षा के लिए जद्दो-जहद करते दिखते है। राज्य के सहायक-सहिकायें अपने अन्धकार भरे भविष्य को लेकर चिंतित हैं। ठेका मजदूर (खास कर ठेका विद्युतकर्मी) तो ऐसे कोल्हू के बैल बना दिए गए है जिन्हें दर्द से कराहने पर पुचकार की जगह कोड़े खाने पड़ते हैं। यहाँ की जनता लगातार भूख से काल के गाल में समाते जा रही है और सरकार ऐसी मौतों का कारण बीमारी को बताती है। यहाँ इलाज तो दूर की कौड़ी है ही, सरकार मरीज़ो को एम्बुलेंस तक मुहैया नहीं करा पाती। डीजल-पेट्रोल- गैस की गगन-चुम्बी कीमतों ने गरीबों के मुंह से निवाले छीने लिए औरउनके चूल्हे तक बुझ गए हैं और अलग झारखंडके सिपाहियों को मिली भी तो लांछन…!

बहरहाल, यह सरकार फ़र्ज़ी आँकड़े दिखाकर विकास का चाहे जितना ढोल पीट ले, लेकिन असल में इस सरकार के दावे राज्य भर में मज़ाक का विषय बन चुके हैं। हांथी उड़ाने के नाम पर अरबों लूटने के बावजूद औद्योगिक उत्पादन नगण्य है साथ हीं खेती भी भयंकर संकट गुजर रही है। बेरोज़गारी की हालत यह है कि मुट्ठी भर नौकरियों के लिए लाखों विद्यार्थी आरक्षण के नाम पर एक दुसरे के खून के प्यासे हैं। औधोगिक क्षेत्रों में बेरोज़गार मज़दूरों की भरमार है। खाने-पीने, मकान के किरायों, बिजली से लेकर दवा-दारू और बच्चों की पढ़ाई तक के बढ़ते ख़र्चों ने मज़दूरों की ही नहीं बल्कि आम मध्यवर्गीय आबादी की भी कमर तोड़कर रख दी है। ऊपर से सरकार उनकी पेंशन और बीमे की रकमों पर भी डाका डाल चुकी है। ऐसे में कोई झारखंड का ‘ युवा झारखंड स्थापना दिवस ‘ मनाए भी तो कैसे…?

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