भगवान बिरसा की प्रतिमा को किया गया छोटा, झारखंडी शहीदों का यह कैसा सम्मान!

झारखंडी शहीदों को सम्मान देने के मंशा से रघुबर सरकार ने भगवान बिरसा समेत अन्य दस शहीदों के प्रतिमाओं का अनावरण करने का फैसला लिया था। इस प्रोजेक्ट के तहत भगवान बिरसा की 100 फूट ऊँची प्रतिमा की स्थापना एवं पुराना जेल परिसर को बिरसा मुंडा संग्रहालय के रूप में परिवर्तित किया जाना था। प्रतिमा निर्माण का सारा कार्यभार रामसुतार आर्ट एंड क्रिएशन्स को सौंपा गया था। इसके विशेषज्ञों ने पूरे शहर का भ्रमण करने के बाद, सरकार को यह सलाह दिया कि भगवान बिरसा की इतनी ऊंची प्रतिमा के लिए हटिया डैम के समीप चिन्हित स्थान ही उपयुक्त है, चूँकि पुराना जेल परिसर में इतनी विशाल प्रतिमा की स्थापना के उपरान्त दर्शन के लिए जगह शेष उपलब्ध नही थी और आस-पास के इमारतों की वजह से इसकी झलक बाधित हो रही थी।

रामसुतार आर्ट एंड क्रिएशन्स के विशेषज्ञों के इस विकल्प पर विचार करने के बजाय रघुबर सरकार ने प्रतीमा का ही साइज़ 100 फीट से घटाकर 25 फीट करने पर सहमति प्रदान कर दी। हालांकि यह सरकार अपने निर्णय अपने निर्णय को सही साबित करने के लिए पुराना जेल परिसर को बिरसा मुंडा संग्रहालय में तब्दील करने मंशा को ही मुख्य वजह बता रही है, लेकिन सवाल यह उठता है, क्या वाकई में धरती आबा की इस विशाल प्रतिमा को छोटा करने के पीछे सरकार की यही मजबूरी थी ? या फिर झारखण्ड की पृष्ठभूमि पर धरती आबा की महत्ता को कम आंकते हुए अपने चुनावी अजेंडे के लिए आनन-फानन में खानापूर्ति कर इस प्रोजेक्ट को पूरा करना है ।

गौरतलब  है कि इस प्रोजेक्ट में 100 फीट की विशालकाय प्रतिमा की अनुमानित लागत 60 करोड़ बताई जाती है। जिसमे से 30 करोड़ मूर्ति निर्माण के लिए और 30 करोड़ मूर्ति स्थापित करने वाले स्टैंड के बनाने में खर्च होने वाले थे। तो फिर प्रतिमा के साइज़ छोटे करने पर लागत मूल्य में होने वाली कटौती का हिसाब कौन देगा ? सरकार इस सवाल की समीक्षा कब करेगी? दूसरी बात उपयुक्त विकल्प होने के बावजूद सरकार ने यह बेतुका फैसला लिया, तो फिर ऐसा समझना बिलकुल जायज़ होगा कि रघुबर सरकार झारखंड के वीर शहीदों का सम्मान करने का केवल ढोंग कर रही है। वरना सच में इन्हें राज्य के महापुरुषों के लिए यदि आदर होता तो इस योजना में किसी तरह की कोताही या खानापूर्ति नहीं की जाती। खैर मौजूदा सरकार भोली-भाली जनता को लुभाने के लिए किसी भी तरह का स्वांग क्यों न रच ले, इनकी सच्चाई हर बार इनके हरकतों से छलक ही जाती है।

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