फोटोकॉपी वाली झारखंड की रघुबर सरकार

झारखंड की जनता ने 2014 में भाजपा द्वारा दिखाए गये अच्छे दिनों के सपनों से भ्रमित हो एक उम्मीद से झारखंड की बागडोर रघुबर सरकार को सौंपी थी। पर बहुत जल्द ही जनता के समक्ष यह साबित हो गया कि अच्छे दिनों की आशा करना एक भ्रम से ज्यादा कुछ और नही। सत्ता में आते ही रघुबर सरकार का असली रंग जनता के सामने आ ही गया। सरकार अपने किए गये वादों से सीधा पलटने लगी, और तो और बिना सूझबूझ के केंद्र के नक्शे कदम पर चलती दिखी। राज्य की रघुबर सरकार का किसी भी मुद्दे, सरकारी योजनाएं या सरकार के फैसले पर अपना मत दिखाई नहीं देता। ऐसा लगता है मानों यह सरकार केंद्र की हाथ की कठपुतली बन बैठी हो।

हांलाकि ऐसा पहली बार देखने को नहीं मिल रहा कि झारखंड की रघुबर सरकार जनता की आँखों में धूल झोंकने का काम कर रही हो या अपनी बातों से यू-टर्न लेती हो। लेकिन इस बात का ताजा उदहारण ये है कि केंद्र सरकार के द्वारा पेट्रोल-डीजल के दाम में किए गये कटौती के तुरंत बाद ही झारखंड सरकार द्वारा भी कटौती की गयी। इससे पहले पेट्रोल-डीजल के दामों में हुए वृद्धि पर रघुबर सरकार इस बात पर अड़ी रही थी कि पेट्रोल और डीजलों पर लगाए जा रहे टैक्स को कम नहीं किया जा सकता, इससे राज्य के हित और विकास पर असर पड़ेगा।

परन्तु जैसे ही केंद्र ने पेट्रोल-डीजल के दामों में कमी करने की घोषणा की, तब रघुबर सरकार ने लोगों को बरगलाने वाली विकास की जो बात कही थी, वह राह छोड़ बिना अपने राज्य के विकास और हित की चिंता किए बिना इनके दामों को कम करने का निर्णय लिया। इस पूरे प्रकरण में रघुबर सरकार या तो केंद्र की बेफिजूल वकालत करती दिखी या उनके हर एक निर्णय का कॉपी-पेस्ट करती। राज्य में उनकी ‘बिना दिमाग के कॉपी पेस्ट’ वाली सरकार सी पहचान रह गयी है।

परन्तु जनता अब इस बात से अनभिज्ञ नहीं रही कि रघुबर सरकार ने अपना आत्मसम्मान केंद्र को गिरवी रख दिया है, किसी भी मुद्दे पर इनका न ही अपना मत रहता है और न ही केंद्र के बिना दखलंदाजी के सरकार चलाने का साहस। लेकिन जनता को अब इस ‘ट्रबल इंजिन’ वाली विकास विरोधी सरकार की आवश्यकता नहीं है। अब बस इन्हें सबक सिखाने और धूल चटाने के लिए 2019 का इंतज़ार कर रही है।         

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