सुदेश महतो मजबूरी में झारखंड भी बेच सकते हैं?

सुदेश जी शहीद निर्मल महतो अपमान पर क्यों चुप हैं  ( —पी.सी. महतो (चक्रधरपुर) की कलम से )

शहीद निर्मल महतो के नाम पर अपनी राजनीति चमकाने वाले महाशय सुदेशमहतो आज उन्हीं के के अपमान पर खामोश है। खामोशी का कारण सत्ता के लोभ की मजबूरी है। क्या एक इंसान इतना मजबूर हो सकता है! इसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। शहीद निर्मल महतो के हत्यारे धीरेंद्र सिंह की रिहाई का निर्णय झारखंड की मौजूदा रघुवर सरकार के द्वारा लिया गया है। आजसू राजनीतिक दल के विधायक चंद्रप्रकाश चौधरी  इसी सरकार के मंत्री हैं।

सत्ता सुख, पार्टी फंड और बॉडीगार्ड के लिए राजनीतिक करने वाले सुदेशजी  ने आज अपना असली चेहरा झारखण्ड के जनता के बीच प्रस्तुत किया है। निश्चित रूप से आज शहीद निर्मल महतो जी की आत्मा सुदेश महतो के करतूतों से रो रही है। जिस महान महापुरुष के बलिदान से झारखंड आंदोलन को गति मिली, आज उसी के हत्यारों को सुदेश महतो के इशारे पर राज्य की आदिवासी-मूलनिवासी विरोधी सरकार ने बरी करने का निर्णय लिया है।

स्वाभिमान यात्रा पर निकले सुदेश महतो सभा पर सभा कर रहे हैं परन्तु निर्मल महतो के हत्यारों को छोड़े जाने के संबंध में उनके मुँह से एक भी बोल  नहीं फूट रहे हैं। यह किस प्रकार का स्वाभिमान जताने निकले हैं, झारखंड की जनता जानना चाहती है। क्या निर्मल महतो के हत्यारों को उम्र कैद जैसी सजा से रिहाई दिलाना झारखंडियों के स्वाभिमान पर हमला नहीं है ? धिक्कार है ऐसे नेताओं पर, पैसों के खातिर जो अपने माई-माटी-मानुष तक को भी बेच सकते हैं। ऐसे नेताओं का कोई स्वाभिमान नहीं हो सकता है। ऐसे लोगों या नेताओं को 2019 में जमींदोज करने की आवश्यकता है।

झारखंड की समझ चुकी है कि सुदेश महतो केवल वोट के गणित के लिए चुनाव के वक्त शहीद निर्मल महतो जी का नाम का राजनैतिक इस्तेमाल करते हैं, बाकी समय में निर्मल महतो इनके लिए केवल एक मृत या कूड़ेदान में फेंके जानी वाली वस्तु है। अलग-अलग विचारधाराओं का गठबंधन कभी नहीं हो सकती है। लेकिन सत्ता लोभ के मजबूरी में सुदेश जी इतना नीचे गिर सकता है इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। आज हमें मालूम हुआ कि अपने स्वार्थ के लिए लोग राज्य को भी बेचने को तैयार हैं। 15 दिनों के अंदर अगर सुदेश महतो सरकार से समर्थन वापस नहीं लेते हैं तो यह समझ लेना चाहिए कि सुदेश महतो मजबूरी की पराकाष्ठा पार कर चुके हैं। अब उनसे कुछ उम्मीद नहीं की जा सकती है। झारखंड को गिरवी रखने में सुदेश महतो का नाम शीर्ष पर  गिना जाएगा।

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