सावधान! यह अपशब्द नहीं एक प्रकार का उकसावा है

 

अब ये साफ़ हो गया है कि आगामी चुनाव तक रघुवर सरकार और उनका अनुषांगिक दल झारखण्ड भर में साम्‍प्रदायिक तनाव बढ़ाने, धर्म और जाति के आधार पर ध्रुवीकरण को तेज़ करने और हर तरह के विरोधियों को कुचलने के लिए किसी भी हद तक जाने से गुरेज़ नहीं करेंगे। अगले चुनाव में अब लगभग एक वर्ष समय बचा है और जनता के बढ़ते असन्‍तोष से भाजपा और उसके भगवा गिरोह की नींद हराम होती जा रही है। झारखण्ड में हुए कई उपचनुावों और जगह-जगह सरकार-विरोधी आन्‍दोलनों से उन्‍हें जनता के ग़ुस्‍से का अन्‍दाज़ा बख़ूबी हो रहा है। यह हाल कमोवेश पूरा देश में ही चल रहा है। इसका सटीक उदाहरण यह है कि पिछले दिनों राजस्‍थान में मोदीजी की रैली में काले झण्‍डे दिखाने की आंशका से घबराये हुए प्रशासन ने रैली में आये लोगों के काले कपड़े, दुपट्टे, पगड़ी, टोपी तक उतरवा डाली, फिर भी रैली में मोदी की हाय-हाय और ”मोदी वापस जाओ” के नारे जमकर लगे। और यह स्थिति ठीक रघुवर दास जी के साथ खरसावाँ में हुए घटने से करीब-करीब मेल खाती दिखती है।

वो कहते हैं न ‘विनाश काले विपरीत बुद्धि’ कुछ ऐसा ही हाल झारखण्ड के संस्कारी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी का है। वो कहते हैं ना कि जैसे ही अहंकार का बास होता है सरस्वती विदाई ले लेती है। यह पहले भी देखा जा चूका है कि यहाँ के मुख्यमंत्री स्वयं मीडिया के समक्ष विपक्षी पार्टियों के प्रति अपशब्दों का प्रयोग कर चुके हैं। शायद उन्हीं से सीख लेकर अब इस राज्य के डीजीपी एक तरफ तो रघु भजन भजते हैं तो दूसरी तरफ उनके शब्दों से कानून अपने हाथ में लेते प्रतीत होते हैं। और मीडिया के समक्ष कह डालते हैं “छह इंच छोटा करने” जैसी ओंछी बात। यह सिलसिला झारखण्ड राज्य में अब इतना आगे बढ़ चूका है कि इनके मंत्री “आंखे निकाल गोटियाँ खेलने” या “आंख उठाकर देखा तो हम उसकी आंखें निकाल लेंगे” जैसी शब्दों का भी प्रयोग करने से गुरेज नहीं रखने लगे हैं। इन सभी प्रकरण भी पोषित भीड़ के लिय एक उकसावे से अधिक नहीं है। अतः हमें अभी से चेत जाना चाहिए। इन परिस्थितियों में हम सिर्फ यही उम्मीद लगाए बैठे हैं कि शिशुपाल के कब सौ अपशब्द पूरे होंगे।

दरअसल, यह सबकुछ इनकी बढ़ती बदहवासी को दर्शा रहा है। अर्थव्‍यवस्‍था में छायी मन्दी और बढ़ती बेरोज़गारी के काले बादल दिन-ब-दिन घने होते जा रहे हैं और सरकार के साथ-साथ भगवाधारियों के दरबारी अर्थशास्‍त्री को भी उम्‍मीद की कोई किरण नहीं दिख रही है। सरकार की आरती गाने वालों के सुर बदलने का यही राज़ है। यही वजह है ‍कि सट्टा बाज़ार के सूचकांक में भले ही गिरावट देखने को मिल रही हो, लेकिन नफ़रत के सूचकांक में ज़बर्दस्‍त उछाल दिखायी दे रहा है। विकास की गर्जना भी अब शान्‍त हो चुकी है और साम्‍प्रदायिक विद्वेष व अन्धराष्‍ट्रवाद का उन्‍मादी शोरगुल देश भर में फैल रहा है। रघुवर सरकार विकास की दहाड़ भूलकर अपने फिसड्डीपन का ठीकरा अतीत की सरकारों पर मढ़ने में लगे हुए हैं वहीं दूसरी ओर उनके संघी गिरोह के उपद्रवी बिरादर सड़कों पर आतंक मचाने से लेकर टीवी स्‍टूडियो और सोशल मीडिया, व्‍हाट्सऐप जैसे माध्‍यमों से अल्‍पसंख्‍यकों, दलितों, स्त्रियों और राजनीतिक विरोधियों के विरुद्ध निकृष्‍टतम स्‍तर के घृणि‍त विचारों का विषवमन करते दिख रहे हैं। हमेशा की तरह इनकी अगुवाई ख़ुद नरेन्‍द्र मोदी ने सँभाल रखी है फिर रघुवर दास सरीखे प्यादों की क्या बिसात।

सरकार झूठे मुद्दे उछालने, लम्‍बे-चौड़े हवाई वायदे करने, जुमलेबाज़ियों और नफ़रत फैलाने के ज़रिये असली मुद्दों को हाशिये पर धकेल देने की रणनीति में हिटलर और मुसोलिनी का काबिल वारिस साबित हुआ है। इतिहास में हुई अपनी दुर्गति से सीखकर आज फ़ासीवादी राजनीति खुले-नंगे रूप की जगह संसद और संवैधानिक संस्थाओं का आवरण ओढ़कर अपनी नीतियों को लागू कर रही है। सेना-पुलिस-न्‍यायपालिका और चुनाव आयोग सहित तमाम संवैधानिक संस्‍थाओं और शिक्षा-संस्‍कृति-विज्ञान आदि के संस्‍थानों तक में इसने अपनी पैठ बनायी है और उनका बहुत योजनाबद्ध ढंग से भगवाकरण किया है। मोदी लहर के उतर जाने या चुनाव में इसके हार जाने से भी फ़ासीवादी राक्षस का अन्‍त नहीं हो जायेगा। समाज में इसकी जड़ें लगातार फैल रही हैं। धार्मिक, जातीय और अन्‍धराष्‍ट्रवादी नफ़रत का ज़हर पूरे समाज की पोर-पोर में फैलाने में ये कामयाब हो रहे हैं। बेरोज़गारी, ग़रीबी और महँगाई के कारण जनता में सुलग रहे ग़ुस्से को एक व्‍यापक आन्‍दोलन के रूप में फूट पड़ने से रोकने में ये इसीलिए कामयाब हो रहे हैं क्‍योंकि लोग आपस में बुरी तरह बँटे हुए हैं और एक-दूसरे को ही अपना दुश्‍मन मान बैठे हैं। एसी स्थिति में यही कामना की जा सकती है कि जनता समझदार हो जाय।

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