झारखण्ड में महाबंदी से घबराई भाजपा सरकार

 

झारखण्ड मुक्ति मोर्चा और तमाम विपक्ष दलों द्वारा किए गए 5 जुलाई की महाबंदी अंततः सफल रही। इसका मुख्य कारण इस बंदी को प्राप्त जनता का अपार समर्थन माना जा सकता है तभी तो नेतागण इसके लिए झारखण्ड की जनता को बधाई दे रहें है। इस महाबंदी की सफलता अपने आप में यह भी बयान करती है कि यहाँ की जनता रघुवर सरकार से कितना दुखी है। समर्थक, कार्यकर्त्ता एवं आम-जन आज जिस प्रकार पानी में भींगते हुए भी अपनी रोष का प्रदर्शन इस महाबंदी के रूप में किया, ये देख इसके तथ्यों को बड़ी आसानी से समझा जा सकता है।

रघुवर सरकार और उसकी भोंपू मीडिया अभी से ही कहने लगी है कि बंदी बेअसरदार था। अगर बंदी इतना ही बेअसरदार था तो फिर नेता प्रतिपक्ष हेमंत सोरेन, बाबूलाल मरांडी, अजयकुमार, सुबोधकांत सहाय एवं अन्य बड़े नेताओं को इस जनविरोधी सरकार ने गिरफ्तार क्यों किया? और गिरफ्तारी की संख्या पूरे राज्य में लगभग पचास हज़ार के पार है। क्या ये कोई गैरकानूनी कार्य कर रहे थे? सच तो यह है कि झारखण्ड राज्य में यह पहला बंदी ऐसा था जिसमे बंद के दौरान कोई जोर जबरदस्ती नहीं की गयी। अब देखिये न मोदी जी चीन के मोबाइल का विरोध करते-कतरे चाइना बैंक ही भारत ले आये। अब तो ऐसा लग रहा है कि ये लोग इसे भी विपक्ष की चाल कहने वाले हैं। इसलिए यह सरकार घबराहट में अनाप-सनाप वक्तव्य दे रही है।

इन्होंने इस महाबंदी को कुचलने के लिए क्या-क्या प्रयास नहीं किया। जिस प्रदेश का डीजीपी रघुवर सरकार के भजन में मस्त हों, जिसकी वीडियो तक वायरल हो गयी हो, वे क्या किसी दृष्टीकोण से इस प्रदेश की जनता और इस महाबंदी के प्रति कभी निष्पक्ष हो सकते है?

इस महाबंदी के आह्वान से यह सरकार इतनी डरी हुई थी कि इन्होने छात्रावास के बच्चों तक को नहीं बख्शा। राजधानी रांची के 13 छात्रावासों में अवैध रूप से रहने का आरोप लगा छात्र-छात्राओं को इस सरकार ने छात्रावास खाली करने का  फरमान सुना दिया। शिक्षक और संसाधन तक मुहैया न करा पाने वाली सरकार को क्यों अभी ही जरूरत पड़ गयी थी छात्रावास खाली करवाने की। जिला कल्याण पदाधिकारी के अनुसार अब तक 300  से अधिक छात्रों को नोटिस जारी कर दिया गया है। यह सिर्फ इसलिए हो रहा है क्यूंकि कहीं छात्र संगठन सरकार के विरोध में न खड़ा हो जाए और अपने भविष्य को लेकर सवाल न पूछ बैठे। सरकार इन युवाशक्तियों से इसलिए भी डर रही है कि कहीं ये युवा भोले-भाले आदिवासियों के आन्दोलन विपक्ष के सुख-दुःख से ना जुड़ जाए और इस अडानी-अम्बानी के टुकड़े पर पलने वाली सरकार के खम्भों को न हिला दे।

लबोलुवाब यह है कि इस महाबंदी की धव्नि इतनी तो जरूर जोरदार थी, जिसकी गूँज कई दिनों तक रघुवर जी के साथ-साथ दिल्ली में बैठे हुक्मरानो के कानों गूंजने वाली है।

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