परितोष उपाध्याय क्यों सात सालों से का तबादला नहीं हुआ?

परितोष उपाध्याय का तबादला क्यों नहीं होता ? 

चापलूसी का आज के जमाने में बड़ा बोलबाला है जो काम योग्यता के बल पर नहीं हो पाता, चापलूसी उसे आसान बना देती है। इसलिए आजकल सर्वत्र झुकाव चापलूसी की ओर दिखाई पड़ता है। विद्यार्थी जब देखता है कि परीक्षा में उत्तीर्ण होना उसके बूते की बात नहीं, तो वह संबंधित शिक्षक की चापलूसी करना शुरू कर देता है। जब मातहत देखता है कि पदोन्नति की योग्यता उसमें नहीं है, तो संबंधित अधिकारी की चापलूसी में लग जाता है। मेरे एक परिचित हैं, जो कहते हैं कि आज शिक्षा में एक पाठयक्रम चापलूसी का भी होना चाहिए और उसे अनिवार्य रखा जाना चाहिए। कुर्सी बचाने को बड़े नेताओं की चापलूसी करते हैं अधिकारी और खुदकी तो वारे न्यारे करते ही हैं साथ ही  जुर्म करने वालों को सिक्योरिटी देते हैं…

लगता है झारखण्ड स्टेट लाईवलीहुड सोसाईटी (JSLPS) के मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी श्री परितोष उपाध्याय ने भी इसी फेहरिस्त में एक नई साझेदारी की शुरुआत की है शायद!

झारखण्ड अधिनियमों की सत्यता की माने तो झारखण्ड में किसी भी प्रशासनिक पदाधिकारी का कार्यकाल निश्चित स्थान पर किसी खास पद पर तीन वर्षों से अधिक नहीं हो सकता परन्तु जब हम परितोष उपाध्याय के वर्षकाल का निरक्षण करते है तो पाते हैं कि कैसे ये महाशय एक ही पद पर लगातार सात वर्षों से कुंडली जमाये बैठे है? सवाल उठना तो लाज़मी है। क्या ऐसा नेताओं/मंत्रियों के संरक्षण के बिना संभव हो सकता है? और नेता! बिना अपने फायदे के ऐसी  मदद करता  हो ऐसा प्रतीत होता नहीं !

तारा शाहदेव मामले के मुख्य आरोपी रंजीत सिंह कोहली उर्फ रकीबुल हसन ने पूछताछ में कुछ नए खुलासे किए थे। उसने झारखंड के एक न्यायाधीश को हाइकोर्ट का जज बनवाने का वादा किया था। उक्त न्यायाधीश कतिपय आरोपों के कारण जज नहीं बन पाए थे।

पुलिस और सीआइडी टीम से कोहली ने कबूल किया था कि वन विभाग के अधिकारी उनके दोस्त थे। पूछताछ के ही दौरान कोहली ने अपने जवाब में वन सेवा के परितोष उपाध्याय और कई अधिकारियों के नाम लिए थे। फिर भी मंत्री जी का इनपे इतनी दरियादिली दिखने का क्या प्रयोजन  हो सकता है?

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