परमवीर चक्र अल्बर्ट एक्का आदिवासी होने के कारण – अपमान!

परमवीर चक्र अल्बर्ट एक्का

वीरता, त्याग, तपस्या की भावनाएं भारतभूमि की परंपरा रही हैं। भारतमाता के सपूत वीरगति को प्राप्त होना स्वर्ग प्राप्त होने के बराबर मानते है। इस धरती पर एक से एक वीर हुए जिन्होंने मुल्क की सरहद को माता का वस्त्र मानकर उसकी रक्षा के लिए वीरगती को प्राप्त हुए हैं। ऐसे ही एक शहीद, बिहार रेजीमेंट के चौदहवीं बटालियन, परमवीर चक्र विजेता भारत मां के बहादुर बेटे का नाम ‘अलबर्ट एक्का’ था। लांस नायक अलबर्ट एक्का ने 1962 के भारत-चीन युद्ध में अपनी बहादुरी दिखाई पर 1971 के भारत-पाक युद्ध में माटी के लाल ने जो काम कर दिखाया, वह शायद उनके बिना मुश्किल पड़ता है। अलबर्ट एक्का ने इस युद्ध में पाकिस्तानी सेना को डेढ़ किलोमीटर तक पीछे धकेल ‘गंगासागर अखौरा’ को पाक फौज के नापाक कब्जे से आजाद कर लिया। इस ऑपरेशन में वे काफी घायल हो गये और 3 दिसम्बर 1971 को वीरगती को प्राप्त हुए। इनको पूर्वी भारत के प्रथम परमवीर चक्र विजेता का गौरव प्राप्त है।

झारखण्ड प्रदेश की भाजपा और आज्सू वाली सरकार केवल फोटो खिचवाने और अपनी वाहवाही लूटने के उद्देश्य से आयोजित सरकारी समारोह में मुख्यमंत्री के साथ सरकार की आदिवासी कल्याण मंत्री लुईस मरांडी साथ ही सरकार के कई विधायक एवं सरकारी पदाधिकारियों ने शिरकत की। समारोह में परमवीर चक्र अल्बर्ट एक्का की पत्नी बलमदीना एक्का को सरकार ने सम्मानित भी किया। इसी मौके पर ‘जारी’ ग्राम में समाधि स्मारक-शौर्य स्थल बनाने की आधारशिला रखी गई जिसे स्थानीय विधायक कोष से पूरा कराया जाना था, परन्तु अबतक स्मारक के लिय ईंट तक ढाक के तीन पात ही है।

क्या परमवीर चक्र अल्बर्ट एक्का का आदिवासी होने के कारण उनका अपमान किया जा रहा है?

गुमला भाजपा विधायक शिवशंकर उरांव यह दलील दे कर किनारा करना चाहते हैं, ‘आखिर समाधि-स्मारक का निर्माण वे कैसे कराते? सरकार ने जो पवित्र मिट्टी मंगवाई, उसे वीर सपूत के घर वालों ने लेने से मना कर दिया था. भले ही आधारशिला रख दी गई, लेकिन उस स्थल पर मिट्टी तो नहीं रखी गई। मिट्टी भरा कलश अब तक जिला प्रशासन के पास है।’ क्या वे भूल गए की सरकार ने ही दोबारा अल्बर्ट एक्का के परिजनों को भेजकर अगरतला स्थित समाधि स्थल से मिट्टी मंगवाई थी।

रतन तिर्की बताते हैं, सरकारी समारोह में मिट्टी को लेकर सवाल खड़े हुए थे। परमवीर चक्र अल्बर्ट एक्का के परिजनों ने विनम्रता पूर्वक यह कहकर कलश लेने से मना कर दिए कि वे लोग कैसे मान लें कि यह मिट्टी अल्बर्ट एक्का के समाधि स्थल की है। सरकार को जब अल्बर्ट के समाधि स्थल की जानकारी मिली, तो उन्हें इसकी सूचना क्यों नहीं दी गई?

बाद में अल्बर्ट एक्का के परिजनों को सरकार ने सरकारी खर्चे पर रतन तिर्की और अल्बर्ट के पुत्र विसेंट एक्का की अगुवाई में दस लोगों के द्वारा 16, जनवरी 2016 को त्रिपुरा के तत्कालीन मुख्यमंत्री माणिक सरकार की मदद से अगरतला की धुलकी गांव स्थित अल्बर्ट की समाधि स्थल से मिट्टी फिर से झारखंड मंगवाई।

परन्तु समाधि-स्मारक निर्माण की आधारशिला रखे जाने के 27 महीने उपरांत भी एक ईंट तक नहीं जोड़ी जा सकी है। गुमला भाजपा विधायक शिवशंकर उरांव के आए वक्तव्य से सरकार की मंशा का पता चलता है। झारखण्ड के इस उदासीन रवईये पर अल्बर्ट एक्का के परिजन तथा उनके गांव ‘जारी’ के लोगकाफी दुखी हैं।

इस समाधि और शौर्य स्थल का निर्माण हो सके, इसके लिए अब सामाजिक स्तर पर अभियान शुरू किया जा रहा है। अभियान के तहत अल्बर्ट एक्का फाउंडेशन ने विभिन्न संगठनों के साथ साथ इस शहीद के परिजन एवं गरम वासियों की सहायता से यह काम पूरा करने का संकल्प लिया है। सामाजिक स्तर पर जन समर्थन और आर्थिक सहायता जुटाकर इसके निर्माण का अभियान शुरू किया जाएगा।

अंत में उनकी कुछ और यादें

उन्हें हासिल प्रशस्ति पत्र पर भारत-पाक युद्ध में उनकी वीरगाथा लिखी है. भारत सरकार ने साल 2000 में इस वीर सपूत की याद में एक डाक टिकट भी जारी किया। राजधानी रांची के बीचोंबीच अल्बर्ट एक्का की आदमकद प्रतिमा लगी है।यह जगह अल्बर्ट एक्का चौक के नाम से प्रसिद्ध है।

आदिवासी सरना धर्म के संयोजक तथा आदिवासी विषयों के जानकार लक्ष्मी नारायण मुंडा बताते हैं कि छोटानागपुर के आदिवासी इलाकों में कई परिवारों में लोग अपने बच्चों के नाम बड़े गर्व के साथ बिरसा मुंडा, अल्बर्ट एक्का रखते रहे हैं। यह वीर सपूत और योद्धा के प्रति उनके प्रेम और सम्मान को जाहिर करता है। सुदूर इलाकों में पहाड़ों- जंगलों के बीच इन वीरों की गाथा अब भी गीतों में गूंजती है।

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