मच्छर जनित बीमारियों से क्यों भारत निपट नहीं पा रहा

मच्छर जनित बीमारियों से निबटने में भारत नाकाम 

सवाल है कि भारत मच्छर जनित बीमारियों खासकर मलेरिया से निपट क्यों नहीं पा रहा? मलेरिया के खात्मे के लिए बने कार्यक्रम और अभियान आखिर क्यों ध्वस्त हो रहे हैं? ऐसी नाकामियां हमारे स्वास्थ्य क्षेत्र की खामियों की ओर इशारा करती हैं। ये नीतिगत भी हैं और सरकारी स्तर पर नीतियों के अमल को लेकर भी। मलेरिया उन्मूलन के लिए जो राष्ट्रीय कार्यक्रम बना, वह क्यों नहीं सिरे नहीं चढ़ पाया? जाहिर है, इन पर अमल के लिए सरकारों को जो गंभीरता दिखानी चाहिए थी, उसमें कहीं न कहीं कमी अवश्य रही। इन सबसे लगता है कि मलेरिया के खात्मे की मूल दिशा ही प्रश्नांकित रही है। सरकार का मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम कामयाब नहीं हो पाया था, जो 2013 में बंद कर दिया गया।

भारत आखिर मलेरिया से मुक्ति कैसे पाएगा? डब्ल्यूएचओ ने दुनिया से मलेरिया का खात्मा करने के लिए 2030 तक की समय-सीमा रखी है। भारत को भी अगले बारह साल में इस लक्ष्य को हासिल करना है। आम आदमी को जीने के लिए स्वस्थ वातावरण मुहैया कराना सरकार की जिम्मेदारी है। मच्छरों के पनपने के लिए नमी और गंदगी सबसे अनुकूल होते हैं। मलेरिया से निपटने में स्वच्छता का अभाव एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आया है। स्वच्छता के मामले में भी भारत की स्थिति दयनीय है। साफ-सफाई को लेकर लोगों में जागरूकता की बेहद कमी है। दूसरी ओर स्थानीय प्रशासन और सरकारों की लापरवाही भी इसके लिए जिम्मेदार है। भारत में आज भी कूड़ा प्रबंधन की ठोस योजना नहीं है।

शहरों में गंदगी मच्छर होने का बड़ा कारण है। दरअसल, हमारे पास निगरानी और नियंत्रण के उपाय सुझाने वाला तंत्र नहीं है। मलेरिया को कैसे भगाएं, यह हमें श्रीलंका और मालदीव जैसे छोटे देशों से सीखना चाहिए। श्रीलंका ने जिस तरह मलेरिया का खात्मा किया, वह पूरी दुनिया के लिए मिसाल है। श्रीलंका ने मलेरिया खत्म करने के लिए देश के कोने-कोने तक जागरूकता अभियान चलाया, मोबाइल मलेरिया क्लीनिक शुरू किए गए और इन चल-चिकित्सालयों की मदद से मलेरिया को बढ़ने से रोका गया। भारत में पल्स पोलियो जैसा अभियान पूरी तरह सफल रहा, तो फिर मलेरिया के खिलाफ हम जंग क्यों नहीं जीत सकते?

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