झारखण्ड – 21वीं सालगिरह : अलग झारखंड के इतिहास में पूर्व की सत्ताओं में गोदी मीडिया नये-नये मनगढ़न्त किस्सों का प्रचार कर झारखंड के महान नेताओं महापुरुषों के छाप को मलीन करने में जुटी रही. नये-नये झूठ गढ़कर उसके महान संघर्षों के इतिहास की सच्चाइयों को नीचे दबा देने की कवायदें जारी रही. लेकिन मौजूदा झारखंडी मानसिकता के सत्ता के दौर में नये चक्र का शुरुआत जरुर दिखने लगा है. इस नयी क्रान्ति की तैयारी के काल में लम्बी-मोटी व अमिट रेखाएं खिंची जा रही है. जिसके अक्स में चलो फिर से मुस्कुराएं, चलो फिर से दिए जलाएं की मंशा झलकती है. जो भविष्य में झारखण्ड को उसके परम्पराओं अनुरुप परिभाषित करने में सक्षम होगा.
ज्ञात हो, 15 नवंबर 2021 को झारखंड अपने स्थापना के 21 वर्ष पूरे करने जा रहा है. झारखंडवासी जब इस दिन धरती आबा भगवान बिरसा मुण्डा की जयंती पर उन्हें याद कर सही मायने खुश हो सकते है. वैसे कहने को यह दो अवसर हैं लेकिन मूल में भगवान बिरसा व अलग झारखण्ड के मायने अलग नहीं है. दोनों का अर्थ है इस क्षेत्र की जनता के हक-अधिकारों की रक्षा. ऐसे में जब झारखण्ड झारखंडी मानसिकता के सत्ता में अपना 21वीं सालगिरह मनायेगा तो संघर्ष के सैकड़ों सालों के उस इतिहास को व पूर्व की तमाम बाहरी मानसिकता के सत्ताओं में हुई दुर्दशा का वर्तमान स्थिति से तुलनात्मक समीक्षा जरुर करेगा.
बाहरी मानसिकता के सत्ता का वह दौर व झारखंडी मानसिकता की सत्ता का मौजूदा दौर
राज्य ने लोटा-पानी व बाहरी मानसिकता के सत्ता में उस दौर को भी देखा जिसे अक्स में संतोषी भात-भात कहते हमे अलविदा कह गयी. बेटी के लिए न्याय मांगता एक बेबस बाप को राज्य के मुखिया से बेईज्जती मिली. हमारी माताओं-बहनों को हक-अधिकार के बदले पुलिस की लाठियां मिली. उस सत्ता ने झारखंडी बेटों की खाल उतार कर स्थापना दिवस भी मनाया. झारखंड के संसाधनों व ज़मीन लूट की काली कहानी और राज्य के सुरक्षा कवच सीएनटी/एसपीटी एक्ट को ख़त्म करने साजिश भी उसी दौर में रची गयी. राज्य ने तमाम त्रासदी नजदीक से कुछ महसूस किया है.
लेकिन, झारखंडी मानसिकता के मौजूदा दौर में झारखंड पहली बार अपने महापुरुषों के उन सपनो को जी रहा है, जिसके नींव पर अलग झारखण्ड खड़ा हुआ था. इस दौर में हेमन्त सत्ता द्वारा खीची जा रही तमाम मोटी लकीरें झारखण्ड को संबलता की राह ला खड़ा किया है. इस सत्ता ने महामारी काल निश्चित रूप से अपने नागरिकों के जीवन की चिंता की, देश की भी चिंता की. राज्य में स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर हुई. कई कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से जनजीवन संभाला है. महिला सशक्तिकरण पर जो दिया गया.
औद्योगिक विकास फिर से परिभाषित हुई है
राज्य में औद्योगिक विकास ‘झारखण्ड औद्योगिक और निवेश प्रोत्साहन नीति’ के रूप में फिर से परिभाषित हुई. राज्य गठन के बाद पहली बार जेपीएससी की नियमावली का गठन हुआ. चार जेपीएससी की परीक्षा एक साथ ली गई. राज्य के रगों में खेल बसता है, एक ऐसी खेल नीति की तरफ सरकार बढ़ चली है जो राज्य में खेल संस्कृति का निर्माण करेगा. राज्य में खनन के अलावा पर्यटन के क्षेत्र में भी असीम संभावनाओं का द्वारा खोलने में सफल हुई है. प्राथमिकता के साथ सामाजिक-आर्थिक रूप से हाशिए पर खड़ी जनता के प्रति अभिभावक रूपी हाथ बढ़ाया है.
राज्य की सामाजिक-सांस्कृतिक ताना बाना को संरक्षित करने के तरफ भी यह सरकार बढ़ी है. शिक्षा को दुरुस्त करने के प्रति कृतसंकल्प है. राज्य ने पहली बार उर्जा शक्ति को पहचाना है. राज्य अपने मजदूरों की श्रमशक्ति को पहचाना है. पारा शिक्षकों के मूल समस्याओं को पहचान उसके निदान के तरफ सरकार बढ़ चली है. आदिवासी समुदाय को पहचान दिलाने की कवायद भी दौर में हुई. प्राकृतिक संरक्षण, कृषि में आधुनिकीकरण, पलाश के रूप में महिलाओं की श्रमशक्ति को नयी पहचान इस सत्ता के दौर में ही मिली है. और झारखंड अपने आन्दोलनकारियों को वास्तव में सम्मान देने की ओर भी बढ़ चला है.
बहरहाल, झारखण्ड यदि अपनी संस्कृति विशेषता के मद्देनजर सामूहिकता की भावना के साथ शांति, सौहार्द और आपसी सहयोग के साथ विकास की परिभाषा गढ़ रहा है. ऐसे में राज्य गठन की 21वीं सालगिरह की खुशियां खुले दिल से मनाने के लिए झारखंडियों के कई कारण हो सकते हैं.
झारखण्ड खबर की पूरी टीम की ओर से झारखण्ड के 21वीं सालगिरह की अग्रिम शुभकामनाएं…