नए मोटर व्हीकल कानून के अंतर्गत भारी जुर्माना वसूली ने देश भर में हाहाकार मचा दिया है। ऑटो चालकों, ई-रिक्शा पर तीस चालीस हजार से लेकर एक लाख तक का जुर्माना लगाया है। टैक्सी, ऑटो व टू-व्हीलर चलाने वाले पर इतना अधिक जुर्माना लगाया गया है कि कई लगों ने गरीबी में बेबस हो अपनी गाड़ी तक जला दी है। निःसंदेह यह क़ानून ग़रीब व मेहनती आम जन पर प्रकोप बन कर बरस रहा है। कई स्कूटी व छोटी गाड़ी वालों के पास अपने काम पर जाने या छोटे व्यवसाय के यही एकमात्र साधन था के रोजी रोटी पर सीधा हमला है। मोदी सरकार दरअसल ढकोसला करते हुए टैक्स टेरर के माध्यम से अपने पूंजीपति आकाओं के लिए जनता के जेब पर डाका है।
सरकार ने इस साल के ‘बहीखाता’ बजट में पूंजीपति घरानों को कई लाख करोड़ (!) बेलआउट पैकेज के रूप में दे दिया, साथ ही अमीरों पर लगने वाले कॉरपोरेट टैक्स कम कर दिया, मंदी से उबारने के लिए हमारा बैंकों में जमा सत्तर हजार करोड़ लोन में इन्हें दे दिया, रिजर्व बैंक की रिजर्व राशि 1.76 लाख करोड़ भी इन पूँजीपतियों के लिए निकलवा लिए। जबकि सरकारी खजाने का सारा पैसा पूँजीपतियों पर लूटा पहले ही चुकी है। यह वही सरकार है जिसने विजय माल्या से लेकर नीरव मोदी, मेहुल चोकसी विदेश भगा दिया, और दूसरी तरफ सरकारी खज़ाने में कमी का हवाला देकर शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार की योजनाओं को अंगूठा दिखा दिया।
मसलन, सरकार की मंशा कभी जनता की सुरक्षा नहीं रही है। निश्चित रूप से सुरक्षा के लिए मोटर व्हीकल कानून होने चाहिए परन्तु इसका कतई यह मतलब नहीं होना चाहिए कि गरीब ऑटो चालकों, ट्रक चलाने वालों के मुँह से निवाला ही छीन लिया जाय। वहीं अब तक के कार्यवाही में यह साफ़ झलक रहा है कि जुर्माना मुख्यत: ऑटोचालक, टैक्सी चालक, ट्रक वालों, व दुपहिया वाहनों से वसूली जा रही, जबकि बड़ी गाड़ियों में सफ़र करने वाली आबादी खुली घम रही है। यही नहीं पूँजीपतियों द्वारा लाइसेन्स, पर्यावरण और श्रम कानूनों के चोरी पर सरकार चुप रहती है। हमें अब तो यह समझ लेना चाहिए कि यह पूँजीपतियों की चाकरी करने वाली सरकार है।