ज्योतिराव फुले : मौर्य, शाक्य, कुशवाहा व सैनी समाज का गौरव              

बहुजन समाज का मानना है कि ऐसे तो सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के नाम पर शिक्षक दिवस मनाया जाता है, लेकिन इतिहास खंगालने पर वे इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि शिक्षा के क्षेत्र में ज्योतिराव फुले जी का योगदान कहीं ज्यादा है आधुनिक भारत में सवर्ण होने के नाते प्रचार के बल पर जो स्थान राधाकृष्णन जी को मिला उससे ज्योतिराव फुले जी को महरूम रखा गया 

सर्वपल्ली राधाकृष्णन के पैदा होने के 40 साल पहले, 1848 से ही “ज्योतिराव फुले” ने आधुनिक भारत में शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति शुरू कर दी थी फुले ने 4 सालों के भीतर ही सुदूर गॉव देहातों में पहुँच तकरीबन 20 स्कूल खोल डाले थे, जिनमे महिलाओं के लिए पहला स्कूल उनके द्वारा खोला जाना शामिल है इसके लिए उन्होंने समाज के बंधनों को ताड़ते हुए सबसे पहले अपनी पत्नी को शिक्षित किया, जबकि सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने न ही कभी कोई स्कूल खोला और न ही कभी अपनी पत्नी को पढाया! फुले ने पिछड़ी-दलित-आदिवासियों को जातियों को न केवल शिक्षा का अधिकार दिलाया बल्कि तमाम उम्र बिना मेहनताना लिए उन्हें वैज्ञानिक सोच वाली शिक्षा दी ताकि समाज अन्धविश्वास के भ्रम जाल से वे बाहर निकल सके, जबकि सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने जिंदगी भर पैसे लेकर केवल मनुवादी विचारधारा वाली शिक्षा दिए!

बाल विवाह के विरोधी व विधवा विवाह के समर्थक ज्योतिराव फुले ने समाज के तमाम कुरीतियों को हटाने के लिए कार्य करते रहे फुले ने ”गुलामगिरी” नामक ग्रन्थ लिख कर शूद्रों को ग़ुलामी का एहसास कराया, जबकि राधाकृष्नन जी ने अपने जीवन काल में, कोई ऐसा काम नहीं किया किसानों को जगाने के लिए ज्योतिराव फुले ने ‘किसान का कोड़ा’ नामक किताब लिखी, आज से 150 साल पहले कृषि विश्वविद्यालय की सोच रखी, जबकि सर्वपल्ली राधाकृष्नन ने शूद्रों-अछूतों की स्थिति पर कोई किताब नहीं लिखी, बल्कि विधवा विवाह व महिला शिक्षा के विरोधी भी थे। यही नहीं सभी को मुफ्त शिक्षा और सख़्ती से दिया जाए इसके लिए ”हंटर कमिशन”जैसी मांग उन्होंने उस समय के शिक्षा आयोग के समक्ष रखी मसलन, देश के एससी-एसटी-ओबीसी-मूलवासी ही अब फैसला करें कि क्या शिक्षक दिवस के दिन ”राष्ट्र गुरु” रूप में ज्योतिराव फुले को सम्मान नहीं दिया जाना चाहिए? साथ ही उनके नक़्शे कदम पर भारतीय शिक्षा की नीव नहीं रखी जानी चाहिए? 

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