झारखंड मुक्ति मोर्चा पार्टी के कार्यकर्त्ता की कलम से…
भारत की ‘झारखंड मुक्ति मोर्चा पार्टी’ का अंतिम लक्ष्य है महान शहीदों के रास्ते से गरीब आम अवाम सत्ता की स्थापना और समाजवादी व्यवस्था का निर्माण। यानी एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण जिसमें राज-काज और समाज के पूरे ढाँचे पर आम आवाम का हक़ हो और फ़ैसला लेने की ताक़त वास्तव में उनके हाथों में हो। लेकिन इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए यह ज़रूरी है कि देश भर के गरीब वर्ग के स्वतन्त्र राजनीतिक पक्ष का निर्माण किया जाये और देश की हरेक महत्वपूर्ण राजनीतिक प्रक्रिया और राजनीतिक क्षेत्र में इस वर्ग का क्रान्तिकारी हस्तक्षेप हो।
आम मेहनतकश जनता में भी तीन संस्तर होते हैं : पहला, जो कि राजनीतिक रूप से बेहद उन्नत है; दूसरा, जो कि राजनीतिक रूप से मध्यवर्ती स्थिति रखता है; और तीसरा, जो कि राजनीतिक रूप से पिछड़ी चेतना का शिकार है। केवल बेहद उन्नत राजनीतिक तत्व ही महज़ क्रान्तिकारी पार्टी के राजनीतिक प्रचार से पूँजीवादी संसदीय जनवाद की सीमाओं को समझ पाते हैं और यह समझ लेते हैं कि इस प्रकार का पूँजीवादी जनवाद कभी मज़दूर वर्ग को वास्तविक प्रतिनिधित्व नहीं दे सकता क्योंकि ऐसे पूँजीवादी जनवाद की चुनावी व्यवस्था में अन्तत: पूँजीपति वर्ग का धनबल ही निर्णायक शक्ति की भूमिका निभाता है।
मसलन, देश के चुनाव देश में स्वतन्त्र आवाम पक्ष की दख़ल अनिवार्य है। यदि ऐसा नहीं होगा तो मज़दूर वर्ग की अपनी स्वतन्त्र आवाज़ और उसके अपने अलग वर्ग हित इस राजनीतिक प्रक्रिया से अनुपस्थित होंगे, जिसके नतीजे भयंकर होंगे। जिससे वह कभी अपनी शक्तियों का सही आकलन नहीं कर सकेगी और बिखराव का शिकार रहेगी। आज तक ऐसा ही होता आया है। इसलिए बड़ी ज़रूरत थी कि चुनावों की पूरी प्रक्रिया में गरीब व आम आवाम वर्गों के स्वतन्त्र राजनीतिक पक्ष की ओर से एक संगठित हस्तक्षेप किया जाये। भारत की झारखंड मुक्ति मोर्चा पार्टी इसी महत्वपूर्ण ज़रूरत को पूरा करने के लिए निरंतर काम कर रही है।