हेमंत सोरेन – झारखंडी आवाम और सघर्ष यात्रा

हेमंत हम -हेमंत हम उद्घोष के कैनवास तले झारखण्ड संघर्ष यात्रा 

ऐसा प्रतीत होता है मानो इस झारखण्ड राज्य में माल्याओं , मोदियों, अम्बानियों, टाटाओं जैसों को ही अपनी बात कहने का हक़ रह गया है? आमजनों को तो शान्तिपूर्ण विरोध करने और अपनी बात रखने का भी हक़ नहीं है। अगर वे प्रयास भी करते भी हैं तो उनका स्वागत पुलिसियातंत्र के डंडों से होती है। लोगों के समझ से परे है कि इस देश में लोकतन्त्र है या फ़िर डण्डातन्त्र? पूरे राज्य में इस समय अफ़रा-तफ़री का माहौल है। छात्र-नौजवान हों या फ़िर किसान-मज़दूर हों, छात्र-छात्राएँ हों या फ़िर सामाजिक कार्यकर्त्ता, जो कोई सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ़ आवाज़ उठाता है, उनका स्वागत लाठियों-गोलियों से किया जाता है।

जबकि आन्दोलनरत लोग केवल संविधान प्रदत्त जीने का अधिकार की ही तो माँग करते हैं! किसानों-मज़दूरों-कर्मचारियों-छात्रों-नौजवानों का दमन करना सरकार का रोज़ का पेशा बन गया है! एक तरफ़ देश बेरोजगारी, भुखमरी, शिशु मृत्युदर, कुपोषण, महिला असुरक्षा आदि मामलों में पूरी दुनिया को पछाड़ रहा है तो दूसरी और कॉर्पोरेट घरानों की सेवा करने, धनपशुओं को फ़ायदा पहुँचाने में भी भारत सबको पीछे छोड़ रहा है। भाजपा के इन अच्छे दिनों से तिलमिलाती झारखंड को उबारने, नेता प्रतिपक्ष हेमंत सोरेन ने कमर कसी और अच्छे दिनों की असल हक़ीक़त को जनता के बीच पहुंचाने के इरादे से झारखण्ड के झामुमो दल ने “झारखण्ड संघर्ष यात्रा” का शुरुआत कोल्हान प्रमंडल के तीन जिलों (पूर्वी-पश्चमी सिंहभूम एवं सरायकेला) से नवीन शुरुआत की। इस पहले भाग के सम्पूर्ण यात्रा में इन प्रमंडलों के तकरीबन लाखों जनता ने उम्मीद से लाबा-लब हो अपना समर्थन एवं विश्वास जताया।

जनता के आँखों में देख कर ऐसा महसूस हुआ कि मानो सर्वग्रासी संकट से ग्रस्त हमारा समाज गहरी निराशा, गतिरोध और जड़ता के अँधेरे गर्त में पड़ा हुआ हो, जहाँ मौजूदा सरकार की कुनीतियों से फैले अँधेरे से पनपे कीड़े बिलबिला रहे हों। जनता ने यह माना कि झारखण्ड संघर्ष यात्रा उग्र रूढि़भंजक, साहसिक और शून्य में प्रकाश-प्रेरणा का ड्डोत बनकर सामने आया है। साथ ही झारखण्ड संघर्ष यात्रा की नवीन शुरुआत के कंधे पर झारखण्डी अपेक्षाओं का भार एकाएक लद गया हो। परन्तु नेता प्रतिपक्ष ने जिस प्रकार अपना अंदाज बदला, मानों झारखंडी अपेक्षाओं के भार ने उन्हें और प्रबल बना दिया हो। इस यात्रा से हेमंत सोरेन एक वैज्ञानिक जीवनदृष्टि का परिचय देते हुए उच्च कोटि के उद्घोषक या गरीबों के पहरुआ बन कर उभरे हैं। उनकी इसी लोकोन्मुख तर्कपरकता, सिद्धान्त और व्यवहार ने लोगों को झूमने पर मजबूर कर दिया।

हेमंत जी ने झारखण्ड सघर्ष यात्रा के दौरान अपनी मारक और विचारोत्तेजक शैली में राज्य के पिछड़े-दलित-आदिवासी-मूलवासी सामाजिक जीवन के हर पहलुओं पर विचार किया। जो कि कई मायनों में वाकई प्रासंगिक थे। इनके अतीत की स्मृतियों से प्रेरणा लेने और अपनी गौरवशाली परम्परा से जुड़कर राज्य के अधूरी राह को आगे बढाने का प्रयास निसंदेह आम जन को प्रभावित कर रही है। आज के मौजूदा झारखण्ड को जिस नये क्रान्तिकारी पुनर्जागरण और प्रबोधन की ज़रूरत है, ठीक वही भूमिका में एक इतिहास-पुरुष व्यक्तित्व की भांति हेमंत सोरेन के संबोधन ने सम्पूर्ण कोल्हान प्रमंडल के साथ-साथ सम्पूर्ण राज्य की जनता को सर्वाधिक आन्दोलित कर रही है।

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