देश भर के किसानों के सपनों को कुचलने वाली भाजपा झारखंड में कैसे हो सकती है किसान हितैषी

झारखंड के भाजपा इकाई का ज़मीनी मुद्दों से कोसों दूर हो झारखंड में किसान हितैषी बनने का नाटक शायद झारखंड में नहीं चलेगा

रांची : झारखंड भाजपा देश में बड़बोले बयानों के लिए जानी जाती है. क्योंकि झारखंड भाजपा कर्म से दूरी बनाते हुए सपने पर यकीन करने वाली पार्टी बन चुकी है. ज्ञात हो, झारखंड में भाजपा नेता केवल चुनावी दौर में गाल बजाते दिखते हैं. और बयानों में सरकार गिरती -बनती रहती है. मौजूदा दौर में, देश स्तर पर किसानों के सपनों को रौंदने वाली भाजपा, किसानों के जन- आंदोलन को निर्ममता से कुचलने का प्रयास करने वाली भाजपा, झारखंड में किसान हितैषी होने की बात कह रही है. लेकिन, बड़ा सवाल है कि देश में किसान अधिकारों का मज़ाक बनाने वाली विचारधारा के नए रूप को राज्य आडम्बर से अलग कैसे मान लें? 

भाजपा ने 6 माह से चल रहे किसान आंदोलन के वजूद को सिरे से ख़ारिज किया है, किसानों के फ़रियाद को सुनने से इनकार कर दिया है. उस दल के नेता-कार्यकर्ता का झारखंड जैसे गरीब राज्य में किसान हितैषी बनना अपने आप में हास्यास्पद हो सकता है. मजाक भर हो सकता है. ज्ञात हो, अस्तित्व के मद्देनजर दिल्ली के बॉर्डर पर छः माह से चल रहा किसान आंदोलन कोई एक-दो राज्यों के किसान का आंदोलन नहीं, बल्कि देश भर के किसानों का आंदोलन है. ऐसे में आंदोलन को केन्द्रीय सत्ता द्वारा ख़ारिज किया जाना, जहाँ देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है तो वहीं भाजपा विचारधारा की तानाशाह की कहानी भी कहती है.

आन्दोलनरत तमिलनाडु के किसानों को दिल्ली में खाने पड़े थे चूहे – फिर भी भाजपा सरकार इंच भर नहीं हिली थी 

भारत देश जितना महान है, त्रासदी उतनी ही दर्दनाक है. केंद्र की भाजपा सरकार के किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ, तमिलनाडु के किसानों ने 2016 में लंबे समय तक दिल्ली में धरना-प्रदर्शन किया था. उस वक्त उन्होंने चूहे खाकर, मूत्रपान कर, सड़क पर खाना खाकर मोदी सरकार तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश की थी. मगर संवेदनहीन भाजपा सरकार ने किसानों के उन मांगों पर कोई तव्वजों नहीं दी थी. जो उनके पीढ़ियों के अस्तित्व से जुड़ी थी.

मुख्यमंत्री रघुवर दास के शासनकाल में छले गए थे झारखंडी किसान

ज्ञात हो, झारखंड में भाजपा की डबल इंजन सरकार, पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास का शासनकाल, जिसके अक्स में राज्य के कई किसानों ने आत्महत्या की थी. मगर उस वक्त भी भाजपा के तत्कालीन सरकार में किसानों की दर्द सुनने की इच्छाशक्ति नहीं दिखी. अब झारखंड में विपक्ष में बैठी ‘ई-भाजपा’ ज़मीनी हकीकत से कोसों दूर खड़ी हो किसानों के हमदर्द होने का दंभ भर रही हैं. जबकि, हकीकतन, महामारी के दौर में भी राज्य में हेमंत सराकर की नीतियां किसानों की संरक्षक बनी रही है.

झारखंड के मौजूदा सरकार में ज्यादातर लोग किसान पृष्ठभूमि से आते हैं. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की तमाम नीतियां किसान हित को समर्पित रही हैं. महामारी के दौर में भी न सिर्फ हेमंत सरकार में किसानों के ऋण माफ हो रहे हैं, बल्कि कई ठोस निर्णय भी लगातार लिए जा रहे हैं.

मसलन, यदि झारखंड भाजपा वाकई किसान हितैषी है. तो उसे सपनों की दुनिया से निकल ज़मीन पर उतर किसानों के साथ जिन्दादिली से खड़ा होना चाहिए. केंद्र सरकार की किसान विरोधी नीतियों का विरोध कर, देश के किसानों को उनका हक दिलाना चाहिए. फिर वह झारखंड में खुद को किसान हितैषी बताये तो सरोकार कायम हो सकता है. अन्यथा यह आडम्बर से अतिरिक्त और कुछ नहीं है.

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