विश्वगुरु के भ्रम तले घरेलू दमन और विफल विदेश नीति ही वास्तविकता

गोदी मीडिया और भाजपा आईटी सेल द्वारा पीएम की “विश्वगुरु” की भ्रामक छवि गढ़ने के प्रयासों के बावजूद, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की विदेश निति को गंभीर क्षति पहुंची है।

रांची : पिछले 11 वर्षों में, मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान, “गोदी मीडिया” और भाजपा के आईटी सेल ने चुनावी सफलता के लिए पीएम मोदी को “विश्वगुरु” और “ग्लोबल साउथ” के नेता के रूप में स्थापित करने के लिए निरंतर प्रयास किए, लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद, जहां पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत की विदेश नीति को गंभीर क्षति पहुंची तो वहीं देश के नागरिकों पर सरकारी नीतियों तले दमन चक्र में वृद्धि देखी गई।

विफल विदेश नीति ही वास्तविकता

इसके अतिरिक्त, विपक्षी राज्य सरकारों और भाजपा शासित राज्यों में विपक्ष को केंद्रीय शक्ति के माध्यम से दबाने के प्रयास दिखे। झारखंड से भेदभाव, मतदाता सूची विसंगतियाँ, स्कूलों को बंद करने जैसे मामले इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। इन चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के बावजूद विपक्ष का विरोध देख गया है. हालांकि, विपक्ष को अभी अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के जुड़ाव को और सुदृढ़ करने की आवश्यकता है पर झामुमो को गठबंधन में शामिल कर बिहार चुनाव लड़ने का निर्णय रणनीतिक रूप से एक सकारात्मक कदम माना जा सकता है।

भारत की विदेश नीति बुरी तरह से विफलता के मुख्य तर्क :

  • गिरती वैश्विक साख: स्वतंत्रता भारत की अपनी स्वतंत्र नीति थी, जो मोदी सरकार में प्रभावित हुई जिसमें दुनिया के देशों को भारतीय विदेश नीति को लेकर भ्रम हुआ है।
  • पड़ोसी देशों से बिगड़ते संबंध: पड़ोसी देश, जैसे नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और मालदीव, भारत की तुलना में चीन के साथ अधिक निकटता से जुड़ गए हैं, जिसके परिणामस्वरूप भारत पर उनकी निर्भरता कम हो गई है। यह देश के भविष्य के लिए अनुकूल संकेत नहीं है।
  • पश्चिमी देशों से भी तनाव: जुलाई 2023 में खालिस्तान समर्थक नेता की हत्या के बाद से भारत-कनाडा संबंध बिगड़े और उनमें सुधार के कोई सकारात्मक प्रयास नहीं हुआ।
  • आतंकवाद पर कूटनीतिक असफलता: उरी, पुलवामा और पहलगाम हमलों के बाद “सर्जिकल स्ट्राइक” और “बालाकोट एयर स्ट्राइक” जैसे अभियानों को घरेलू स्तर पर प्रचारित किया गया, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की सामरिक शक्ति पर सवाल उठे। पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र में महत्वपूर्ण पद दिए गए, जिसे भारत की कूटनीतिक हार माना गया।
  • चुनावी लाभ के लिए युद्धोन्माद: प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के आलोचकों का तर्क है कि उन्होंने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के माध्यम से राष्ट्रवादी भावनाओं को भुनाया। इसे चुनावी रणनीति के हिस्से के रूप में देखा गया। ऐसे समय में, अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा युद्धविराम की घोषणा ने सरकार के उद्देश्यों और सार्वजनिक छवि पर नई बहस छेड़ दी।
  • अंतरराष्ट्रीय छवि का पतन: भारत की छवि एक ऐसे देश की बनी जो पड़ोसी मुल्कों से झगड़ता है। फिलिस्तीन मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र में मतदान से बचना और ईरान पर इजरायल के हमले के बाद SCO के बयान से अलग होना भारत की गिरती साख का प्रमाण है।

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