गुजरात देश से भी बड़ा है इसलिए तो केंद्र सरकार देश से भेदभाव कर रही है?
देश की मीडिया व सुव्यवस्थित आईटी सेल कसीदे पढ़ते नहीं थक रहे, कि कोरोना वायरस जैसे जानलेवा संक्रमण की रोकथाम के लिए सरकार ने पूरे देश को 14 अप्रैल तक लॉकडाउन किया है। साथ ही इस दौरान लगातार लोगों से अपील भी की जा रही है कि वे जहां हैं, वहीं रहें। ये उनकी सुरक्षा के लिए अति आवश्यक कदम है। यह एक हद तक सत्य भी है क्योंकि कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों के संपर्क में कोई दूसरा व्यक्ति आता है, तो इसके चपेट में आ जाता है। तो ऐसे में सवाल उठता है क्या यह नियम केवल गुजरात छोड़ पूरे देश के लिए लागू है, देखा तो कुछ ऐसा ही जा रहा है!
झारखण्ड के भाजपा विधायक दल के नेता श्री बाबूलाल मरांडी अपने ट्विटर वाल पर 31 मार्च को झारखण्ड सरकार को नशीहत देते हुए दीखते हैं। दरअसल वे झारखण्ड सरकार पर आरोप लगाते हैं कि राजधानी राँची से राज्य सरकार के एक मंत्री और उनके लोगों के इशारे पर करीब 700 लोगों को बसों में भरकर पाकुड़ और संथाल परगना से सटे बांगलादेश के सीमावर्ती इलाकों तक चुपचाप ले जाया गया है। और साथ में यह भी कहते हैं कि चाहे मंत्री हों या आम नागरिक, जनता की नजर में सभी बराबर हैं। कानून तोड़ने का अधिकार किसी को नहीं है।
लेकिन, बाबूलाल जी शायद इस पोस्ट के आड़ में अपने केन्द्रीय सरकार के असंवैधानिक कृतियों पर पर्दा डालने का प्रयास कर रहे थे। वाकई नियम तो सबके लिए बराबर होना चाहिए – जिस खबर पर मानीय बाबूलाल जी पर्दा डालना चाह रहे थे अंततः सामने आ ही गयी। दरअसल गुजरात के हरिद्वार में फंसे 1800 लोगों को हमारे गृहमंत्री अमित शाह व रूपाणी के इशारे पर लग्जरी बसों के माध्यम से गुजरात पहुंचा दिया गया। शायद ऐसा केवल इसलिए हुआ क्योंकि वहां फँसे लोग देश के नहीं बल्कि माननीय प्रधानमंत्री के चेहेते स्थान गुजरात से थे।
मसलन, झारखंडी जनता को बाबूलाल जी को बताना चाहिए कि झारखण्ड के जो मजदूर गुजरात समेत देश के तमाम प्रान्तों में फंसे हैं उन्हें अपनी सरकार से कह कर झारखण्ड क्यों नहीं बुलवाते। क्या उनके लिए नैतिकता का पाठ केवल अपने आका के बचाव व सत्ता समीकरण के लिए ही होता है? क्या अब उनमे झारखंडियों के लिए कोई अपनत्व का भाव शेष नहीं रह गया। आशा करता हूँ सवालों के जावाब वे जल्झाद रखण्ड की जनता को जरुर देंगे।