झारखण्ड मुक्ति मोर्चा स्थापना दिवस का तीर चला भगवा के गढ़ में

यदि कहा जाय कि किसी देश के मूलनिवासी-आदिवासी को भूख के बदले पुलिस की गोली खानी पड़े तो? कहा जाय कि आदिवासी महिलाओं को पुलिस-प्रशासन जब चाहे उठा ले और बलात्कार करे, फिर रहम आए तो जि़न्दा छोड़ दे या उसे भी मार दे तो? यह सब देखते हुए किसी की आँखों में अगर आक्रोश आ जाए तो उसे भी गोली खाने को तैयार रहना पड़े तो? फिर भी कोई मामला न अदालत की चौखट तक पहुँचे और न ही थानों में दर्ज होता हो तो? जी हां झारखंड के अधिकांश आदिवासी-मूलवासी बहुल इलाके का शिबू सोरेन और झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के उदय के पहले का सच यही था।

इन्हीं प्रशासनिक व्यवस्था के जद्दो-जहद के बीच दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने झारखंड में झारखण्ड मुक्ति मोर्चा नामक ढाल की स्थापना की। यही ढाल आगे चल कर यहाँ की शोषित जनता को शोषण से उबरते हुए अलग झारखंड प्रदान की। इन सारी परिस्थितियों  के जो गवाह अब तक सांस ले रहे हैं वो झारखंड मुक्ति मोर्चा या कहें कि अपने ढाल के स्थापना दिवस कैसे ना पहुँचते  -जब झारखंड का माहौल वर्तमान में बिलकुल पहले जैसा ही हो!

 झारखण्ड मुक्ति मोर्चा स्थापना दिवस

दुमका और धनबाद में मनाये गए झारखण्ड मुक्ति मोर्चा स्थापना दिवस पर जमा हुए आम जनता के हुजूम ने एक बार फिर साबित किया, कि जब भी झारखंड की मान-सम्मान की रक्षा की बात आती है तो झारखंड मुक्ति मोर्चा बरगद की भांति गाहे-बगाहे खड़ी हो ही जाती है। इस दल के कार्यकारी अध्यक्ष पिछले कई महीनों से सरकार की जनविरोधी नीतियों की पोल झारखंड संघर्ष यात्रा के अंतर्गत जनता के बीच खोल रहे हैं। साथ ही झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष एवं अन्य युवा विधायक-नेताओं ने जिस परिपक्वता के साथ भूमि अधिग्रहण संशोधन जैसे जन मुद्दों को सड़क के लेकर सदन तक उठाया है, निश्चित तौर पर जनता के बीच चर्चा का विषय बना है।

झारखण्ड मुक्ति मोर्चा स्थापना दिवस२

बहरहाल, यह कहा जा सकता है कि दुमका तो घर है लेकिन धनबाद में हुए स्थापना दिवस में उमड़े भीड़ ने लोगों को जुरूर कहने पर मजबूर किया कि भगवा के गढ़ में इस बार तीर अपने कमान से निकला है।

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