गद्दी पर अगर दुर्योधन है तो द्रौपदी का चीरहरण होना तय है. चाहे वो हस्तिनापुर हो, मणिपुर या नवनिर्मित संसद हो. इस बार भी मोदी के नवनिर्मित संसद में महामहिम द्रोपदी मुर्मू को आमंत्रित नहीं.
रांची : सत्ता की गद्दी पर अगर दुर्योधन है तो द्रौपदी का चीरहरण होना तय है. चाहे वो हस्तिनापुर हो, मणिपुर हो. झारखण्ड गिरिडीह के कवि प्रदीप गुप्ता यदि यह पंक्ति कल लिखते तो शायद वह देश के नवनिर्मित संसद भवन का भी उल्लेख जरुर करते. जिसके अक्स में आदिवासी महामहिम द्रोपदी मुर्मू को संसद प्रवेश दिवस के मौके पर आमंत्रित ना कर देश के राष्ट्रपति पद का मोदी शासन में एक बार फिर चीरहरण हुआ. और देश का देशभक्त युवा अंधभक्ति में आकंठ गोता लागते रहे.
ज्ञात हो, पुरुषवादी मासिकता और बीजेपी-आरएसएस के नीतियों के अक्स में देश के महाहीम राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को संसद पूजन में आमंत्रित नहीं किया गया था. जिसके अक्स में संसद की सार्वभौमिकता और निष्पक्षता पर सवाल उठे थे. इस सन्दर्भ में विपक्षी दलों के बीच असंतोष और नाराजगी दुष्परिणाम के रूप में सामने आया था. और देश की अखंडता के नुकसान के अक्स में जाति आधारित भेदभाव के गंभीर घटना के रूप में सामने आया था.
लेकिन, नव निर्मित ससाद भवन के प्रवेश दिवस पर भी महामहिम द्रोपदी मुर्मू को आमंत्रित नहीं किया जाना देश के आदिवासी राष्ट्रपति पद की अस्मिता का चीरहरण नहीं तो और क्या है. और लोकतांत्रिक देश में बीजेपी और मोदी सरकार के मनुवादी नातियों की पराकाष्ठा नहीं तो और क्या है. ज्ञात हो G20 भोज के लिए दलित नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को भी आमंत्रित नहीं किया गया था. ऐसे में आदिवासी, दलित समेत देश तमाम आरक्षित वर्ग मोदी शासन को मनुवाद से जोड़ कर देखे तो क्या गलत है?