OBC आरक्षण व सरना धर्म कोड की बात क्यों नहीं करते BJP नेता 

ओबीसी आरक्षण 27% व सरना धर्म कोड प्रस्ताव पारित कराने की हिम्मत मोदी सरकार से क्यों नहीं जुटा पाते हैं छलकपट की राजनीति में माहिर झारखण्ड के बीजेपी नेता.

रांची : सीएम सोरेन के जन कार्यों के कारण झारखण्ड राजनीति की आबोहवा बदल चुकी है. कई प्लेटफॉर्म से साफ संकेत मिल रहे हैं कि झारखण्ड की जनता 2014 की गलती फिर नहीं दोहराने के मूड में है. बीजेपी की छलकपट की राजनीति को जनता ने सिरे नकारा है. उदाहरण – विश्वास रैली, मिथ्या आंकड़ों पर पंचायत प्रतिनिधियों को सम्मानित करना, ओबीसी वर्ग को गुमराह करने के लिए राजभवन के समक्ष धरना प्रदर्शन जैसे प्रोपोगेंडा को जनता ने सिरे से खारिज किया है. 

OBC आरक्षण व सरना धर्म कोड की बात क्यों नहीं करते BJP नेता 

जनता भली-भांति समझते है झारखण्ड बीजेपी की मंशा   

ज्ञात हो, सीएम सोरेन के जन कार्यों से बौखलाई झारखण्ड बीजेपी, हेमन्त सरकार को बदनाम करने के लिए नीत नये कृत्रिम मुद्दों को हथियार बना रही है. पंचायत चुनाव के मद्देनजर हेमन्त सरकार पर पिछड़ा वर्ग को आरक्षण के हक से वंचित करने का आरोप लगाया गया. लेकिन सवाल है कि अगर झारखण्ड बीजेपी ओबीसी वर्ग के हितैषी हैं, तो क्यों नहीं वह पहले मोदी सरकार से ओबीसी आरक्षण की सीमा 14% से 27% बढ़ाने की जिद्द करते हैं. क्या जनता ऐसी राजनीति को समझती है?

सीएम सोरेन के नेतृत्व में, आदिवासी हित में, विशेष सत्र के माध्यम से सरना धर्म कोड बिल विधानसभा से पारित कर केंद्र भेजा गया. केंद्र ने अबतक आदिवासियों की अस्तित्व को निर्धारित करने वाली महत्वपूर्ण बिल पर चुप्पी साध रखी है. महामहिम राज्यपाल के स्तर से भी इस बिल को लेकर सुगबुगाहट नहीं दिखती. गंभीर सवाल है कि आखिर क्यों झारखण्ड के बीजेपी नेता केंद्र से राज्य के इन ज्वलंत मुद्दों पर बात नहीं करती है? क्या जनता इनकी बेबसी नहीं समझती है?

जनता के मनोभाव को मोदी सरकार के समक्ष रखने की हिम्मत क्यों नहीं झारखण्ड बीजेपी में 

झारखण्ड के बीजेपी नेता राज्य की वास्तविक तस्वीर केंद्र की मोदी सत्ता के समक्ष नहीं रख सकते हैं. इसके दो प्रमुख कारण हो सकते है –

  1. झारखण्ड बीजेपी की राजनीति मौकापरस्ती पर टिकी मालूम पड़ती है. जहां झारखंडी बीजेपी नेता केन्द्रीय नेतृत्व के समक्ष याचक की स्थिति में दिखते है. और याचक बन कभी भी जन अधिकार की लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती है. 
  2. वर्तमान में केवल 2 शक्ति सम्पन्न लोगों का ही बीजेपी पर वर्चस्व हैं. संघ तक उनके कॉर्पोरेट प्रेम के आगे नतमस्तक होने को विवश है, वहां झारखण्ड जैसे गरीब राज्य के बीजेपी नेताओं की क्या बिसात. मसलन, वर्तमान ये केवल केन्द्रीय भोंपू भर ही प्रतीत हुए हैं.   

बहरहाल, झारखण्डी जनता तमाम परिस्थियों को भली भांति समझ रही है कि उनके मनोभाव को रीढ़ रहित नेता मोदी सरकार के समक्ष नहीं रख सकते हैं. साथ ही हेमन्त सरकार में हो रहे जन कार्यों से उन्हें नई सोच व भरोसा मिला है. नतीजतन, झारखंडी जनता 2014 की गलती से सीख लेते हुए झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के विचारधारा पर अपना विश्वास जताने का मन बनाती स्पष्ट दिखती हैं. 

OBC आरक्षण प्रस्ताव पर कैबिनेट की मुहर के बाद शीतकालीन सत्र में सदन में लाने की कवायद 

ज्ञात हो, कैबिनेट की बैठक में ओबीसी वर्ग के आरक्षण को 14 से 27 प्रतिशत करने के प्रस्ताव को स्वीकृति मिली है. अब हेमन्त सरकार इस प्रस्ताव को विधानसभा से पारित कराने की दिशा में भी बढ़ चली है. आगामी शीतकालीन सत्र में इसे सरकार के पक्ष से सदन के पटल लाया जा सकता है. 

सदन से पारित होने के बाद इसे राज्यपाल के माध्यम से केंद्र सरकार को अग्रेसित किया जाएगा. ताकि इसे संविधान की नौंवी अनुसूची में शामिल कराया जा सके. नौंवी अनुसूची में शामिल करवाने के पीछे सीएम सोरेन व झामुमो की सोच यह है कि भविष्य में फिर कभी इसपर की संकट न आए. 

सरकार विरोधी कार्यक्रम की सूची जिसमें बीजेपी को नहीं मिला जनता का साथ 

  • बिरसा मुंडा विश्वास रैली कर 50,000 जनजातीय लोगों को कार्यक्रम में उपस्थित करने का दावा किया गया. खुद कार्यक्रम में शामिल होने के लिए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा आएं. लेकिन कार्यक्रम में जनजातीय समाज के लोगों ही नहीं आए. 
  • दावा किया गया कि पंचायत चुनाव में नवनिर्वाचित 51 प्रतिशत पंचायत प्रतिनिधी बीजेपी से जुड़े हैं. और वे भाजपा के कार्यकर्ता हैं. इसके लिए पंचायत प्रतिनिधि सम्मान सम्मेलन का आयोजन किया गया. उसमें पंचातय प्रतिनिधि तो आए, लेकिन दावे के अनुरूप 51% जनता नहीं आई. 
  • बिना ओबीसी आरक्षण नगर निकाय चुनाव कराए जाने के विरोध में प्रदेश बीजेपी द्वारा राजभवन के समक्ष प्रदर्शन किया गया. लेकिन कार्यक्रम में ओबीसी वर्ग की संख्या न के बराबर रही. केवल ओबीसी वर्ग के बीजेपी नेताओं ही विरोध कार्यक्रम में दिखे.

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