मणिपुर मामला: बीजेपी न्याय की मांग को बेशर्मी क्यों कहती है

झारखण्ड : मानवीय दृष्टिकोण से विधानसभा में देश के अभिन्न अंग मणिपुर के त्रासदी पर सवाल उठना जायज. ऐसे में बीजेपी का उस न्याय की गुहार को बेशर्मी बताना देश का दुर्भाग.

रांची : मणिपुर दंगा मामले में दर्ज याचिकाओं में सुप्रीम कोर्ट विफल राज्य सरकार की पुलिस को फटकारे. डीजीपी की पेशी का आदेश दे. सुप्रीम कोर्ट स्पष्ट कहे कि वहां कोई कानून-व्यवस्था नहीं. पुलिस की जांच बहुत सुस्त है. दर्ज एफआईआर में दो माह बाद भी गिरफ्तारी न हो. लंबे अंतराल में पीड़ीत का बयान दर्ज हुए. राज्य के सॉलिसिटर जनरल से कहे कि ‘मशीनरी पूरी तरह से ठप रही. राज्य पुलिस जांच करने के काबिल नहीं. तो यह मोदी शासन में देश की त्रासदी का आईना है.

मणिपुर मामला: बीजेपी न्याय की मांग को बेशर्मी क्यों कहती है?

मणिपुर में जारी हिंसा पर ‘इंडिया’ गठबंधन संसद में प्रधानमंत्री के बयान की मांग करे. और वह सत्तारूढ़ एनडीए सामने हो. विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाए. तमान विकट परिस्थियों के बावजूद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्तमान काल देश भर में चुनावी दौरा का सच लिए हो. और वह इसके अक्स में ना संसद की दहलीज पार कर मामले पर ना बयान दे और ना ही मणिपुर पहुंच कर शान्ति कायम करने का प्रयास करे. तो राज्य भर के सदनों में मणिपुर त्रासदी पर सवाल उठना लाजमी है. 

मणिपुर त्रासदी पर सवाल राज्यों के सदन में उठना क्यों बीजेपी के लिए नाजायज 

ऐसे में झारखण्ड के विधानसभा सत्र में देश के अभिन्न अंग, मणिपुर के त्रासदी पर सवाल उठे. वहां की जनता और महिलाओं के मान-सम्मान को लेकर न्याय की मानवीय गुहार लगे. और बीजेपी के वरिष्ठ नेता मानवता पर आधारित इस न्याय की गुहार को बेशर्मी बताए. तो आरएसएस और बीजेपी शासन की सामंती मानसिकता का अनुमान लगाया जा सकता है. उसके मंशा के दूरदर्शी परिणाम समझे जा सकते हैं.

साथ ही बाबूलाल मरांडी जैसे बीजेपी के आदिवासी नेता सह पूर्व सीएम के आखों से मानवीय पानी न टपके. उनका ट्विट केवल केन्द्रीय आकाओं को खुश करने का मौकापरस्त प्रयास करता दिखे. जिसके अक्स में उनके ट्विट का भाव दूर-दूर तक मानवता के पक्ष में खड़ा होता ना दिखे. तो जाहिर है वह मोतियाबिंद की बीमारी से ग्रसित हैं. और उन्हें सबसे पहले सरकारी योजना से अपना मोतियाबिंद ठीक कराना चाहिए.

Leave a Comment