झारखण्ड : जांच एजेंसियों की गतिविधियों को सार्वजनिक कर बीजेपी सांसद ने पहले ही लोकतंत्र को समाप्त करने का कर चुके प्रयास. वही बेसब्री अब बाबूलाल मरांडी और दीपक प्रकाश में क्यों?
मौजूदा दौर में देश के समक्ष सबसे बड़ा प्रश्न – भाजपा शासन में हुए घोटाला या बीजेपी नेताओं के काली कमाई के प्रकरण में जांच क्यों नहीं करती जांच एजेंसी इडी?
रांची : भारत देश की वर्तमान राजनीति में एक अजब-गजब सामन्ती तस्वीरें देखने को मिल रही है. केन्द्र की मोदी सरकार अडानी, सरकार गिराने, इडी डायरेक्टर से लेकर चुनाव आयोग तक के मामले में सुप्रीम कोर्ट के मानकों में मनमानी करती दिखी है. कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार आमने-सामने भी दिखी है. लेकिन, राज्यों के बीजेपी नेता केन्द्रीय शक्तियों के प्रभाव में राज्य सरकारों की बेबस पुकार या अंतिम संरक्षण के आस पर भी राजनीति करने से नहीं चुक रहे.
ज्ञात हो, झारखण्ड राज्य में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) पर एकतरफा जांच के आरोप लगने के बावजूद उनकी जांच प्रक्रिया में कोई बदलाव नहीं दिखा है. तथ्य की तस्दीक विधायक सरयू राय के कई पीसी या बयान स्पष्ट तौर करते हैं. मसलन, सम्बंधित जांच मामलों के आलोक में झारखण्ड के सीएम हेमन्त सोरेन लोकतान्त्रिक चुनी सरकार की संरक्षण हेतु उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था. सबंधित मामलों में एक याचिका दाखिल कर संरक्षण की गुहार लगाई थी.
मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें हाईकोर्ट जाने का सुझाव दिया है. सीएम हेमन्त ने देश की कानून व्यवस्था का मान रखते हुए उच्चतम न्यायालय के फैसले को सम्मान दिया है. लेकिन, बयानों के अक्स में राज्य के भाजपा नेताओं की बेसब्री एक बार फिर छलक कर सामने आया है. ज्ञात हो, भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ईडी जांच मामले में पहले ही लोकतांत्रिक व्यवस्था को समाप्त करने का प्रयास किया है. मसलन जनता इसे एक सुनियोजित षड़यंत्र का हिस्सा मान रही है.
एक सीएम को लेकर बीजेपी नेताओं का खुलेआम बयान साबित करता है कि उन्हें केन्द्रीय षड्यंत्रों के बारे में पता है सबकुछ
उच्चतम न्यायालय के निर्णय के बाद बीजेपी नेता बाबूलाल मरांडी और दीपक प्रकाश का बयान सामने आनाकि सीएम हेमन्त सोरेन को सजा मिलेगी, उन्हें जेल जाने से कोई नहीं रोक सकता. न केवल जांच प्रकरण में स्पष्ट हस्तक्षेप है. कोलिजियम सांठ-गांठ के स्पष्ट संकेत भी देती दिखती है. राज्य के मुखिया के बारे खुलेआम ऐसे बयान साबित कर रहे हैं कि उन्हें पहले से सबकुछ पता है. ज्ञात हो केंद्र की भाजपा सरकार पर सरकारी एजेंसियों के दुरुपयोग के आरोप लगे हैं.
जांच एजेंसियों के गुप्त प्रक्रिया को पहले ही सार्वजनिक करते रहे हैं भाजपा सासंद निशिकांत दूबे
ज्ञात हो, भाजपा के सांसद निशिकांत दूबे केंद्रीय एजेंसियों की गुप्त कार्रवाई व फैक्ट फाइंडिंग की जानकारी लगातार ट्वीट कर देते रहे हैं. जांच एजेंसियों की कार्रवाई से पहले ही निशिकांत ने बताया है कि किसी अफ़सर के मोबाइल में कौन सा मैसेज है. किसका मैसेज किसको गया. उसका टेक्सट क्या है. जिसका स्पष्ट अर्थ हो सकता है कि जांच एजेंसियां भाजपा सांसद को रिपोर्ट करती रही है. और वर्तमान में भी जारी है. झारखण्ड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस नेता इस पर आपत्ति भी जता चुके हैं.
भाजपा नेताओं के घोटालों की जांच ईडी, सीबीआई क्यों नहीं करती?
- भाजपा नेताओं से जुड़े कई मामले या घोटाले सामने आ चुके हैं. लेकिन एक भी प्रकरण में ईडी, सीबीआई, की जांच नहीं होती है, ऐसा क्यों?
- मध्य प्रदेश में हजारों करोड़ के राशन घोटाले का मामला सामने आया. यह भ्रष्टाचार सीएजी की जांच में सामने आया है. इसके बावजूद कोई जांच नहीं.
- कर्नाटक भाजपा विधायक टिकट घोटाले के मुख्य आरोपी हिंदू कार्यकर्ता चैत्रा कुंडपुरा ने इस अपराध में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की संलिप्तता का दावा किया है. जांच एजेंसी ईडी को लिखे पत्र में कुंडापुरा ने मांग की है कि उनके मामले में शिकायतकर्ता उद्योगपति गोविंदा बाबू पुजारी के लेनदेन की धन शोधन रोकथाम अधिनियम के तहत जांच की जाए. लेकिन कोई जांच. ऐसा क्यों?