वफादार LIC के साथ सरकार क्यों कर रही है बेवफाई

भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) का राष्ट्रीयकरण 1956 में हुआ था। पहले इस क्षेत्र में देश मे 200 से अधिक निजी कंपनियां काम करती थी। लेकिन, जब उनकी देनदारी की बारी आती थी वह निजी कंपनियां खुद को दिवालिया घोषित कर देती थी। जिसका परिणाम यह होता था, जनता के पैसे डूब जाते थे। देश के नेताओं व बुद्धिजीवियों के सामने देश की अर्थव्यवस्था मजबूत करने की चुनौती थी ताकि जनता की कमाई को सुरक्षित रखा जा सके। 

LIC का किया गया राष्ट्रीयकरण

सरकार ने LIC का राष्ट्रीयकरण करने का फैसला लिया। उस वक़्त सरकार द्वारा निगम को 5 करोड़ की मूल पूँजी उपलब्ध कराई गयी। जिसमे सावरेन गारंटी भी शामिल थी। जिसके मायने थे कि LIC के दिवालिया होने की स्थिति में जनता के पैसे सरकार वापस करेगी। सरकार ने यह फैसला भी लिया कि LIC में जमा पूँजी का उपयोग उसके निर्देशन होगा।

LIC ने फिर कभी पीछे मुड़कर नही देखा। और यह संस्थान अपने कुल मुनाफ़े का 95 प्रतिशत हिस्सा अपने पॉलिसीधारको के बीच वितरित करती रही है। और शेष बचे 5 प्रतिशत का हिस्सा वह प्रतिवर्ष सरकार को डिविडेंट के रूप में देती रही है। LIC को उपलब्ध कराई  गयी 5 करोड़ की पूँजी के एवज में उसने सरकार को बिना सावरेन गारंटी के उपयोग किए डिविडेंट के रूप में 2600 करोड़ वापस किया है। जीएसटी के आंकड़े को मिलाने पर राशि कई गुना अधिक हो सकती है। 

LIC ने जनता को दिए हैं कई राहत भरे पल 

विपरीत परिस्थितियों में भी जीवन बीमा निगम ने बिना सरकार को परेशान किए जनता के दावों पर खरी उतरी है। भुज, उत्तरकाशी, लातूर का भूकंप हो, या सुनामी जैसे प्राकृतिक आपदाएं संस्थान ने स्वयं ही आगे बढ़कर जनता के दावों का भुगतान किया है। यहाँ तक उड़ी के भयानक घटना में शहीद हुए जवान के पार्थिव शरी पहुँचने के अगले दिन ही उनके पॉलिसियों का भुगतान उनके परिवार को किया। कागजी कार्यवाईया बाद में होती रहीं।

इतना ही नहीं एक कस्टोडियन के रूप में भी देश के विकास में निगम का योगदान अहम है। वर्तमान में LIC के पास 32 लाख करोड़ रुपये का फंड है। जिसके 24 लाख करोड़ रुपये केंद्र सरकार और राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं में निवेशित है। जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली, टेलीकॉम, सड़क, और सामाजिक सुरक्षा आदि। पंचवर्षीय योजनाओं को साकार करने में LIC का हमेशा सराहनीय योगदान रहा है। मसलन, निगम ने न केवल जनता के पैसे को सुरक्षित रखा बल्कि जनता को उसका हक देते हुए राशि का देशहित में इस्तेमाल भी किया है। 

जीवन बीमा निगम ने हमेशा प्रगति किया है

LIC का 20 वर्षो के प्रतियोगी माहौल में भी प्रदर्शन कभी कमजोर नही रहा। वर्तमान में जीवन बीमा निगम का हिस्सेदारी पूरे बीमा क्षेत्र ( 20 देशी विदेशी कंपनियां) में 72 प्रतिशत का है, लगभग तीन चौथाई। निश्चित रूप से यह आंकड़ा देशवासियों के लिए गौरवपूर्ण हो सकता है। फिर यकायक LIC को निजीकरण का दंश क्यों झेलना पड़ रहा है…? पहले सरकार इसके 10 प्रतिशत की हिस्सेदारी बेचना चाहती और अब 25 प्रतिशत। 

ऐसे में कई सवाल है जो सरकार के फैसले पर उंगली उठाती है। जब LIC ने देश के लिए ऐतिहासिक भूमिका निभाई है, पैसे का मोबेलाइज देश हित में किया है। जनता का विश्वास पर खरी उतरती आयी है, प्रतियोगी माहौल में भी सफलता के झंडे गाड़े हैं। तब फिर सरकार ऐसे फैसले क्यों ले रही है। 

मसलन, तथ्यों को देख कर यह समझा जा सकता है कि मोदी सरकार का यह फैसला किसी भी तरह से देशहित मे नही हो सकता है। सरकार का यह फैसला चहेते पूंजीपतियों के दबाव लिया गया हो सकता है। ठीक बीएसएनएल की तरह। जाहिर है केंद्र के फैसले का असर LIC पर प्रतिकूल पड़ेगा। जैसे जनता के पैसों, देश मे होने वाले भारी निवेश आदि पर…।

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