विकास का दंभ भरने वाली भाजपा के पास आज जातिवाद व साम्प्रदायिकता ही एक मात्र मुद्दा  

झारखण्ड : 2014 के विधानसभा चुनाव में विकास का सपना दिखाने वाली भाजपा के पास आज केवल जातिवाद व साम्प्रदायिकता ही एक मात्र मुद्दा. मौजूदा दौर में बतौर विपक्ष भाजपा की राजनीति केवल इसी मुद्दे के इर्द-गिर्द घूमती दिखती है.

झारखण्ड वर्ष 2014, चुनावी मैदान में कॉर्पोरेट्स -उद्योगपतियों के भोंपू में राज्य के कोने-कोने में ‘विकास’ शब्द ऐसे गूंजा. मानों उस दौर में विकास शब्द का खोज भाजपा नेताओं द्वारा हुई हो. प्रधानमंत्री मोदी से लेकर झारखण्ड भाजपा के लोटा-पानी नेता हो या विभीषण वर्गीय नेता, सभी ने केवल विकास शब्द को परिभाषित किया. विकास के मद्देनजर खींची गयी उस लकीरे ने राज्य की जनता को कई सपने सपने दिखाए. उस सपने के अक्स में दिखे कि झारखण्ड में गरीबी दूर हो सकती है. झारखण्ड को अपने आन्दोलन का वास्तविक अर्थ बस 2014 विधानसभा चुनाव के बाद ही मिल सकता है.

वर्ष 2014 में भाजपा द्वारा दिखाए गए सपनों के अक्स में लगा उसके दुख दूर होंगे  

आदिवासियों को नक्सली पहचान से इतर, उनके अधिकार और सरना कोड की लड़ाई को अंजाम मिल सकता हैं. लगा कि नवउदारवाद से शापित दलित-मूलवासी समुदाय को अपने ज़मीन पर विस्थापितों के जीवन से आजादी मिल सकता है. अनुसूचित जाति/जनजाति व पिछड़ों को अधिकार मिल सकता है. झारखण्ड की शिक्षा-व्यवस्था में सुधार हो सकता है. CNT/SPT क़ानून का पालन मजबूती से हो सकते हैं. बेटियां पितृसतात्मक विचार से मुक्त हो अपने सपनों को स्वछंद उड़ान दे सकती है. झारखण्ड के आन्दोलनकारियों को राज्य में सम्मान प्राप्त हो सकता है. खनीज-संसाधन के लूट पर विराम लग सकता है. झारखण्ड के प्राकृत सुन्दरता को संवारा जा सकता है. 

झारखंडी जनता ने भाजपा को झोली भर-भर के वोट के रूप में अपना विश्वास सौपा. बहुमत के साथ राज्य में, 2014 में भाजपा की बहुमत वाली डबल इंजन सरकार बनी. भाजपा-संघ ने राज्य के गद्दी पर गैर झारखंडी मुख्यमंत्री बिठा, झारखण्ड वासियों के सपने को शुरूआती झटका दिया. फिर एक-एक कर राज्य की परम्परा, समाज को सौहार्द के साथ जोड़ कर रखने वाले तमाम मानको को ध्वस्त किया गया. आम आदिवासियों को नक्सल करार दे मौत के घाट उतारे गए. ग्रामसभा को ध्वस्त किया गया. स्कूलों को मर्जर के नाम पर बंद किया गया. यही नहीं CNT/SPT जैसे सुरक्षा कवच को ख़त्म करने की शाजिश रची गयी. मूलवासी पारा शिक्षाकों व आंगनबाड़ी बहनों तक की खाल उतारी गयी.

भाजपा द्वारा झारखण्ड जैसे राज्य को जातिवाद व साम्प्रदायिकता के आग में झोंक दिया गया 

सब हुआ केवल भाजपा-संघ के लूट मानसिकता के घेरे में. उस सत्ता के तमाम कर्मकांड केवल झारखण्ड के संसाधन व बहुमूल्य ज़मीनों की लूट के लिए हुआ. और इसके लिए भाजपा-संघ द्वारा सत्ता के ताक़त से झारखण्ड में साम्प्रदायिकता को हवा दी गयी. जाति-मजहब के नाम पर झारखण्ड राज्य के सौहार्द को तहस-नहस किया गया. आदिवासी समुदाय को जबरदस्ती हिन्दू करार देने की संघी कवायद हुई. वे यहीं नहीं रुके तमाम सरकारी संस्थानों में संघी मानसिकता को स्थापित किया गया. जिसके बल पर आज मुद्दा रहित भाजपा नेताओं द्वारा राज्य में राजनीति करने का प्रयास करती दिखती है.

वर्तमान में संघी मानसिकता से ग्रसित अधिकारियों के लापरवाही से कोई घटना घटित होता है और आनन-फानन में भाजपा नेता द्वारा राजनीति शुरू हो जाती है. उसे इतना भी सब्र नहीं वह जान ले सरकार द्वारा मामले में क्या कदम उठाया जाना हैं. बाबूलाल मरांडी जी प्रेस कांफ्रेंस करते हैं और सिमडेगा मामले को सांप्रदायिक रंग देने का प्रयास करते देखे गए. कल पूर्व प्रवासी मुख्यमंत्री रघुवर दास द्वारा प्रेस कांफ्रेंस कर साम्प्रदायिक जहर उगला गया. मसलन, मौजूदा दौर में भाजपा के पास बतौर विपक्ष का राजनीतिक सफ़र में केवल सम्प्रदायिक मुद्दा ही एक मात्र मजबूत मुद्दा है. और वह हर हाल में यह कार्ड खेलने का प्रयास करती दिखती है. ऐसे में जनता तय करें उन्हें किस राह जाना है.

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