किसान आन्दोलन को कुचलने के लिए षड्यंत्र करने वाली, गड्ढे खोदने वाली, कील ठोकने वाली, गाली देने वाली भाजपा अब सरे आम किसानों की हत्या करने से नहीं चुक रही. क्या यही है भजपा-संघ का असली चेहरा? क्या यही है उसकी महान काली विचारधार…?
उत्तर प्रदेश में भाजपा-संघ की योगी सरकार में लगातार प्रायोजित हत्याएं हो रही हैं. यह उसकी बानगी हो सकती है. ज्ञात हो, भाजपा की तानाशाही नीतियों के अक्स में देश का पालनहार, हमारे किसान देश भर में आन्दोलनरत है. इस आन्दोलन को कुचलने के लिए भाजपा सरकार अबतक षड्यंत्र रचने से नहीं चुक रही थी, खुलेआम भाजपा के मंत्री-विधायक इन्हें गाली देने से नहीं चुके. किसानों के राहों में गड्ढे खोदने से नहीं चूक रही थी, कील ठोकने से भी नहीं चूक रही थी. लेकिन अब यूपी के लखीमपुर से आयी खबर मानवता को और भी शर्मसार करती है. और भाजपा-संघ की विचारधारा की असलियत बाहर लाती दिखती है.
मोदी सरकार की कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों के ऊपर यूपी भाजपा के एक मंत्री के बेटे व उसके समर्थकों ने अपनी गाड़ी चढा दी. इस अमानवीय घटना में चार किसानों की दर्दनाक मौत मौके पर ही हो गई. कई घायल अस्पतालों में मौत की घड़ियाँ गिन रहे हैं. इस घटना से गुस्साए किसानों की भीड़ ने उस गाड़ी में आग लगा दी. गाड़ी में सवार कुछ समर्थकों के मौत की भी खबर है.
पहले भाजपा सरकार जनता की हत्या करे जनता का ही पैसा मुआवजे के रूप में दे, यह कैसी जुगाली ?
हिंसा-प्रतिहिंसा का खेल यूपी में इन दिनों आम हो चली है. ऐसा लगता है कि भाजपा के शासन में इंसानी जान की कोई कीमत नहीं रही. सरकारी संरक्षण में ही जब लोगों की बेरहमी से हत्याएं होने लगे तो मानवता के लिए इससे दुखद घड़ी और कुछ नहीं हो सकती है. राजनीतिक गणित के इर्द-गिर्द आनन-फानन में यूपी सरकार ने तो मृतकों के परिजनों के लिए मुआवजे की घोषणा कर दी है, लेकिन सरकारी नुमाइंदे द्वारा गयी इंसानी जान के मुआवजा का अर्थ अपने-आप में ही गाली समान हो सकता है.
अपराधियों के खात्मे के नाम पर यूपी में योगी सरकार की पुलिस पहले ही हत्याएं की
ज्ञात हो अपराधियों के खात्मे के नाम पर यूपी में पहले ही योगी सरकार पुलिस ने हत्याएं की है. जिसका सच आज सबके सामने हैं. उस पिशाच की खून पीने की लत इतनी बढ़ चुकी है कि वह अब आम नागरिकों को ही शिकार बनाने लगी है. स्थिति यह हो चली है कि शंतिपूर्ण धरना पर बैठे लोगों को गाड़ी से कुचलकर मारा जा रहा है. लेकिन इन तानाशाहियों को यह ज्ञात नहीं है कि जनता के असंतोष व विरोध प्रदर्शन गोली व ह्त्या के डर से शांत नहीं किया जा सकता है.
पूरे प्रकरण में यह भी कहना प्रासंगिक होगा कि भाजपा नेताओं ने इस घटना की लेकर निंदा तक नहीं की है. ज्ञात हो, कुछ दिनों पूर्व असम के भाजपा सरकार में गोली मारने के बाद जमीन पर गिरे अधमरे युवक की छाती पर कूदकर उसकी जान ले ली गई.
मसलन, भाजपा-संघ की यह नयी राजनीतिक परम्परा पूरे देश को बर्बादी के कगार पर ला खड़ा किया है. सांप्रदायिक नफरत के बीज खड़ी भजपा की हिंसा की अब इन्तेहाँ हो गयी है. देश का बुनियादी ढांचा चरमराने लगा है. झारखंड में भी इस घटना को लेकर कोई भी भाजपा नेता सामने नहीं आ रहे हैं. जिससे उनकी मंशा पर सवालिया निशान उठने लगे हैं. यदि यह घटना गैर भाजपा शासित प्रदेश में घटी होती तो भाजपाईयों व संघियों ने ईट से ईट बजा दी होती.