UP : जाति न पूछो साधू की -48 जिलों में तैनात नौकरशाह एक ही जाति के – रामदेव विश्वबंधू 

उत्तर प्रदेश (UP) केवल राजनीतिक दृष्टिकोण देश का बड़ा राज्य नहीं है. सामाजिक-आर्थिक, सांस्कृतिक व धार्मिक कैनवास में भी देश का महत्वपूर्ण राज्य है. प्रद्रेश (UP) में लोक सभा की 80 सीटें है. हिन्दू हृदय स्थल, धर्म और तीर्थ स्थल भी है. प्रदेश सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से एक नहीं है. जहाँ पूर्वी यू पी (UP) और पश्चिमी यू पी में अंतर है तो मध्य यू पी, पूर्वांचल का हिस्सा भी एक दूसरे से अलग है. इसलिए बाबा साहेब अम्बेडकर भी यू पी (UP) को तीन भागों में बांटने की वकालत करते थे. यह प्रदेश जात-पात, दलित-पिछड़े, ब्राह्मण-सवर्ण-ठाकुर, अगड़ा-पिछड़ा कार्ड भी मिज़ाज से खेलता है.

मजेदार बात है कि दूसरे राज्य के लोग भी यहां दलित, पिछड़ा कार्ड खेलने चले आते हैं. जबकि, देश में सबसे ज्यादा दलित, पंजाब में हैं. लेकिन पंजाब की स्थिति अलग है. यहाँ अधिकांश दलित सिख बन गए हैं. बहुत से लोग विदेश चले गए हैं. जो बचे हैं , कुछ आश्रम से जुड़ गए हैं, कुछ डेरा जाकर डेरा डाले हुए हैं. मंडल के पहले यू पी की राजनीति में ब्राह्मण सवर्ण वर्चस्व कायम रहा है. जो मौजूदा सत्ता कमोवेश और भी मजबूत हुआ है. 

मुलायम सिंह यादव और कांशी राम के मिलने से यू पी (UP) में चीजे थोड़ी बदली थी

मंडल के बाद चीजे थोड़ी बदली थी. मुलायम सिंह यादव और कांशी राम के मिलने से यू पी में सपा, बसपा की सरकार बनी थीं. लेकिन यह गठबंधन अधिक दिनों तक कामयाब नही रहा. डेढ़ साल में वह सरकार गिर गई या गिरा दी गई. 3 जून 1995 बहन मायावती पहली बार देश के इस बड़े राज्य यू पी की मुख्यमंत्री बनती है. बीजेपी के सहयोग से सरकार बनती है. उस समय देश के प्रधान मंत्री पी वी नरसिम्हा राव थे. विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेई थे. एक दक्षिण भारत का ब्राह्मण, दूसरा उत्तर भारत का. 

दिल्ली के जाने माने प्रोफेसर दिवंगत डी प्रेम पति, अपने लेख, समकालीन जनमत मे लिखते हैं कि, ये दोनो रात को जब मिलते थे, तो, यू पी की ही चर्चा करते थे. सपा-बसपा की सरकार गिराने का विचार पी वी नरसिम्हा राव ने ही अटल बिहारी वाजपेयी को दिया था. चिंता थी कि, यू पी, देश का बड़ा राज्य है, दलित-पिछड़े वर्ग मिलकर सरकार बनाते हैं, तो ये 10-15% का क्या होगा. यदि यही प्रयोग अन्य राज्य करते हैं तब क्या होगा. पहले तो अटल बिहारी वाजपेयी जी ने इंकार किया, कि, बीजेपी यूपी में मायावती को सहयोग करेगी. 

अटल जी का तर्क था कि कल्याण सिंह विरोध करेंगे. पी वी नरसिम्हा राव ने कहा कि आगे की सोचो… और वही हुआ भी. अब तो समय काफी बीत चुका है. मंडल में कमंडल घुस गया है और कमंडल में मंडल. इधर योगी आदित्यनाथ हिदू वादी राजनीति में आते हैं. गोरखनाथ मठ, जो कभी निर्गुण निराकार रूप मे विश्वास करता था, जहाँ देवी देवता की मूर्ति भी नहीं होती थी. उस मठ से मुस्लिम भी जुड़े थे. उस मठ के महंत अवैध नाथ जी मंदिर आंदोलन से जुड़े. उनके देहांत होने के बाद, योगी आदित्यनाथ, उक्त मठ के उत्तराधिकारी बनते हैं.

मात्र एक सप्ताह जेल में रहने भर से ही योगी आदित्यनाथ संसद में रोने लगे थे

बीजेपी से हटकर राजनीति करते हैं. उत्पात मचाने के लिए योगी आदित्यनाथ ने हिन्दू युवा वाहिनी बना डाला. दर असल, हिन्दू युवा वाहिनी, नहीं, यह राजपूत युवा वाहिनी है. इसका काम भड़कीले भाषण, दंगा करना-कराना होता था. एक मजार जलाने के आरोप में योगी आदित्यनाथ को, 28 जनवरी 2007 को पुलिस अरेस्ट करती है. एक सप्ताह जेल में बंद रहते हैं. एक सप्ताह मात्र जेल में रहने से इनकी हालत खराब हो गई थी. संसद में रोने लगे थे. आखिर ये माफी वीर के वैचारिक वंशज जो ठहरे.

जे पी आंदोलन में जेल गए आरएसएस के बाला साहेब देव रस ने भी माफी मांगी थी. अभी भी योगी आदित्यनाथ पर कई आपराधिक मामले है. कुछ मामले खुद खत्म करवा दिए. इनका ओबीसी चेहरा केशव प्रसाद मौर्य है, इनके खिलाफ भी कई मामले है. इनके विरोधी नारा लगाते थे, केशव नही कसाई है, अतिक अहमद का भाई है. मौजूदा दौर में चुनाव में सिर्फ जात पात ही नहीं है, पैसा भी बोलता है. जाति विशेष की पार्टी बना ली, जाति का वोट बैंक, फिर कैश कीजिए. दबंग, सवर्ण, जो पैसा पार्टी फंड में देता है, टिकट ले सकता है. पिछले पांच साल में खूब जात-पात किया गया.

कोई राम तो कोई परशुराम…

विडंबना है, शिक्षा, स्वास्थ, खेती, सिंचाई, रोजगार, महिला सुरक्षा पर कोई चर्चा नहीं हुई. लेकिन मंदिर-मस्जिद पर खूब राजनीति हुई. 2012 से 2017 तक अखिलेश यादव की सरकार थी. उस समय भी आरक्षण विरोधी लोगो ने भी उत्पात मचाया था. यू पी राज्य लोक सेवा आयोग का बोर्ड मिटाकर, यू पी राज्य यादव आयोग लिख दिया था. भीड़ ने एक दुकान मे रखी भगवान कृष्ण की फोटो फाड़ दी थी; मानो वे यादव को कृष्ण से जोड़ रहे हो. मतलब साफ है, राम और कृष्ण का उपयोग सत्ता और केवल सत्ता के लिए किया गया सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था बदलने के लिए नहीं. कोई राम तो कोई परशुराम…।

अंतर क्या है इन दोनों में. यूपी के शिक्षण संस्थानों में किसकी कितनी भागीदारी है सबको पता है. कुछ साल पहले, प्रोफ़ेसर ज्यों द्रेज का लेख epw में छपा था, उन्होंने लेख में बताया कि, इलाहाबाद में सभी सरकारी-गैरसरकारी संस्था में सवर्ण भरे पड़े हैं. खैर जो भी हो, हर चुनाव में नेता जीत जाता है, जनता हार जाती है. जनता भी, जाति धर्म भाषा के जाल में अपने वाजिब सवाल भूल जाती है. ऑक्सीजन के अभाव में मरते बच्चे. गंगा में तैरती लाशें. हाथरस 1..2.. आगामी 10 मार्च को तय है कि 543 नए राजे रजवाड़े के रूप में ये करोड़पति सांसद होंगे. उसी तरह विधायक भी होंगे.

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