झारखण्ड : 21 वर्षों में पहली बार हेमन्त सोरेन के नेतृत्व में गंभीरता से आदिवासियों की वर्तमान स्थिति का आकलन हुआ और आदिवासी वर्ग के हित में कई ठोस व निर्णायक फैसले लिए गए. लेकिन भाजपा की नहीं मिली सराहना.
रांची : झारखण्ड के 21 वर्षों के इतिहास में एक आदिवासी सीएम, हेमन्त सोरेन के नेतृत्व में पहली बार गंभीरता से सोच गया कि जिन आदिवासियों की जमीन के नीचे देश का सबसे ज्यादा खनिज दबा है, वह गरीब क्यों हैं? क्यों हक-अधिकार के प्रति आवाज उठाने पर उन आदिवासियों को जेल में डाला जाता है? क्यों झारखण्ड में विस्थापन व विकास के नाम पर केवल जमीन व खनीज-संपदा की लूट का सच सामने है.
इस गंभीर मुद्दे पर झारखंडी दृष्टिकोण से आकलन हुआ और आदिवासी हित में कई ठोस व निर्णायक फैसले लिए गए. सीएम हेमन्त के नेतृत्व में न केवल आदिवासी वर्ग के हक-अधिकार और जल, जंगल, जमीन को संरक्षण मिला है, हाँसिए पर खड़ा इस वर्ग को शिक्षा से लेकर आर्थिक, सामाजिक व ऐतिहासिक दृष्टिकोण से विकास पथ पर अग्रसित करने का प्रयास हुआ है. लेकिन विडंबन है किसी भी निर्णायक सले में भाजपा की सराहना हेमन्त सरकार नहीं मिली.
सीएम हेमन्त के नेतृत्व में आदिवासी हित में लिए गए ठोस व निर्णायक फैसले
- हेमन्त सरकार में जनजातीय वर्ग को शिक्षा से जोड़ने का प्रयास हुआ है. ज्ञात हो झारखंड के जनजातीय युवा को मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा पारदेशीय स्कॉलरशिप स्कीम के तहत सरकारी स्कॉलरशिप पर विदेश भेजकर उच्च शिक्षा लेने का मौका दिया गया है.
- जनजातिय बाहुल्य क्षेत्रों में विकास हेतु जनजाति सलाहकार परिषद –TAC का गठन हुआ है.
- जनजाति समाज के धार्मिक स्थलों को विकसित करने का काम शुरू हुआ.
- आदिवासियों की पहचान, सरना धर्म कोड बिल विधानसभा से पारित के केंद्र को भेज गया.
- नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के संबंध में जनहित को तरजीह दी गई.
- 21 सालों में पहली बार जेपीएससी (JPSC) नियमावली बनी, परीक्षा सम्पन्न हुई, रिकार्ड समय में परिणाम घोषित हुए और दसकों से रिक्त पड़े पदों पर नियुक्तियाँ हुई. इसमे पहली बार निष्पक्ष रूप से आदिवासी समुदाय को मौका मिला.
- निजी क्षेत्र के नियुक्तियों में 75% आरक्षण के तहत 10 हजार से अधिक युवाओं को नौकरी मिली है. पहली बार हाँसिए पर खड़े आदिवासी वर्ग कि निष्पक्ष रूप से मौका मिल है.
- हेमंत सरकार में पहली बार ट्राइबल फिलोसॉफी जोर दिया गया. अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजन हुआ.
- जनजातीय भाषाओं में शिक्षा पर जोर दिया गया.