टीआरपी घोटाला से भाजपा सत्ता व मीडिया -लोकतंत्र का चौथे खम्भे के सम्बन्ध का सच आया सामने
इससे इनकार नहीं कि मीडिया लोकतंत्र का चौथा खम्भा है, लेकिन जब लोकतंत्र जनसमुदाय के ख़ून-पसीने की कमाई को हड़प कर ही अस्तित्वमान रहना चाहे और खुद के ख़िलाफ़ उठने वाले हर जनवादी आवाज़ को कुचलने पर आमादा हो, तो कहा जा सकता है यह लोकतंत्र का खम्भा जनता के सीने में ही धँसा चूका है। मौजूदा दौर में मीडिया के ऐसे कई सच उभर कर सामने आये हैं जो साबित करता है कि इसका पूरा खेल पूंजी के इर्द-गिर्द ही सिमट गया है।
किसी भी शोषणकारी व्यवस्था को लम्बे समय तक अस्तित्व बरकरार रखने के लिए, अपने विचारों, एजेंडों, दृष्टिकोणों और नीतियों की स्वीकार्यता स्थापित करने के लिए विभिन्न माध्यमों की आवश्यकता होती है। और मौजूदा दौर में पूंजीवादी मीडिया इस कर्तव्य को बखूबी निभा रही है। विज्ञापन जगत और मीडिया संस्थान एक दूसरे से जैविक रूप से जुड़े हैं। तमाम मीडिया संस्थान अपने मुनाफे के लिए विज्ञापन की दौड़ में शामिल है और घपले-घोटाले करने से नहीं चुकते। इसी मॉडल का एक सच टीआरपी घोटाला के रूप में आज हमारे सामने है!
टीआरपी और इसके मापन प्रणाली कैसे कार्य करेगा
टीआरपी घोटाला समझने के लिए पहले टीआरपी और इसके मापन प्रणाली को समझना चाहिए। टीआरपी रेटिंग तय करता है कि कौन-सा चैनल कितना देखा जाता है। और उसी के आधार पर चैनल की विज्ञापन दर तय होता है। बीएआरसी टीआरपी मापने के लिए देश भर में सेट-टॉप बॉक्स के साथ बैरोमीटर या पीपल मीटर नाम की डिवाइस लगाती है। जिसकी जानकारी केवल बीएआरसी और पीपल मीटर लगाने वाली कम्पनी (हंसा) को ही होती है। पीपल मीटर अपने आस-पास के सेट-टॉप बॉक्स की तमाम जानकारी मॉनिटरिंग टीम को भेज देता है। यही डाटा मौजूदा दौर में टीवी चैनलों के कमाई का मुख्य जरिया है। इसीलिए तमाम चैनल अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए जनवादी मुद्दों से खिलवाड़ करने से नहीं चुकते।
रिपब्लिक भारत ने कैसे टीआरपी घोटाला किया
हाल ही में टीआरपी घोटाले में रिपब्लिक भारत, न्यूज़ नेशन, महामूवी चैनल और इसके अलावा दो मराठी चैनल फ़क्त मराठी व बॉक्स ऑफिस का नाम सामने आया है। ये चैनल टीआरपी बढ़ाने के लिए उन लोगों को पैसा दे रहे थे जिनके घरों मे पीपल मीटर लगा हुआ है, ताकि लोग इनका चैनल खोले रहें, चाहे वह देखें या ना देखें। इस घोटाले ने पूँजीपति-नौकरशाही के साँठ-गाँठ को पूरी तरह से नंगा कर दिया है, क्योकि बिना प्रशासनिक साँठ-गाँठ के यह सम्भव ही नहीं है कि न्यूज़ चैनल उन घरों का पता लगा सके जिन घरों मे पीपल मीटर लगा है।
दरअसल टीआरपी का पूरा सिस्टम ही एक घोटाला है और यह काम सिर्फ़ अकेले चैनल नहीं बल्कि खेल में सत्ता भी मदद करती है। अर्णब गोस्वामी अपने भाजपाई मालिकों के लिए कितना उपयोगी है, इसका पता तो उसकी गिरफ्तारी के बाद भाजपा के मंत्रियों की चीख़-पुकार से ही लग गया। अनेक बुद्धिजीवी, बुजुर्ग सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार फर्जी आरोपों में जेलों में बन्द हैं, लेकिन भाजपा की ओर से सबसे ज़ोर से भौंकने वाले कुत्ते को छुड़ाने के लिए पूरी सरकार और देश की सबसे बड़ी अदालत एक टाँग पर खड़ी हो गयी।