आदिवासी पहले वनवासी थे अब सरना-सनातन एक है – तो सरना कोड की मांग क्यों?

कभी बुद्ध के समकालीन तो कभी सरना के समकालीन खुद को खड़ा करने के प्रयास में पेंडुलम के भांति झूलते देखे जा रहे हैं सरना-सनातन एक कहने वाले. धम्म लिपि ना पढ़ पाने वालों का अब आदिवासी बनने का प्रयास.

रांची : पुरातात्विक साक्ष्यों के मद्देनजर एक तरफ देश के बहुसंख्यक वर्ग के द्वारा भारत को बुद्ध की धरती बताने की गुहार लगभग हर मंच पर लगाया जा रहा है. और वह वर्ग प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर धम्म लिप्पी को जम्बूदीप का पौराणिक भाषा मान रहे हैं. और संस्कृत को धम्म लिप्पी का संस्कारित भाषा जान गौरान्वित महसूस कर रहे हैं. इसके साक्ष्य देश के ख्याति प्राप्त अन्तरराष्ट्री भाषा वैज्ञानिक डॉ राजेन्द्र प्रसाद सिंह अपने फेसबुक वाल से साझा भी कर रहे हैं.

आदिवासी पहले वनवासी थे अब सरना-सनातन एक है - तो सरना कोड की मांग क्यों?

ऐसे कडवे सच के काट में पौराणिक धार्मिक ग्रंथों में सनातन शब्द साक्ष्य भाव अनुरूप उल्लेखित ना होने के बावजूद मनुवाद चौकड़ी के द्वारा लगातार हिन्दू धर्म को सनातन बताने का प्रयास हुआ है. जिसका उदेश्य केवल अपने धर्म को बुद्ध के समकालीन खड़ा करने का प्रयास ही प्रतीत होता है. लेकिन, मजेदार बात यह है मनुवाद चौकड़ी को अब तक अपने धर्म का असल नाम तक पता नहीं है. और पेंडुलम की भांति जबरन कभी बुद्ध के छोर तो कभी आदिवासी के छोर पर टिकने का प्रयास हो रहा है.

सनातन जैसे विशेषण को संज्ञा बना आदिवासी के समकालीन खडा होने का प्रयास 

वर्तमान में इस मानसिकता के द्वारा ऐसे प्रयासों में एक और कदम आगे बढ़या गया है. अब यह चौकड़ी सनातन जैसे विशेषण को संज्ञा बना सरना जैसे ऐतिहासिक साक्ष्य से खुद जोड़ कर टिकने का प्रयास कर रहा है. ज्ञात हो, झारखण्ड जैसे आदिवासी क्षेत्रों में पहले ये जमात बनवासी शब्द के आसरे ‘अतिथि देवता होता’ के भाव को चरितार्थ करने वाली शबरी से आदिवासियों को अलग करते हुए राम जैसे वनवासी किरदार से जोड़ने का कुत्सित प्रयास होता रहा. 

लेकिन, जब आदिवासी समुदाय ने उसे हिन्दू कहे जाने के एजेंडे पर कड़े शब्दों में विरोध जताया और खुद के लिए पृथक सरना धर्म कोड की मांग की. तो मनुवाद ठीक टैंक द्वारा बड़ी शातिराना तरीके से सरना-सनातन एक है जैसे एजेंडा को आगे बढ़ा दिया गया है. और इस भ्रम के अक्स उसका खुद को आदिवासी के समकालीन खड़ा करने का कुत्सित प्रयास भर है. और बहुसंख्यक आबादी की एकता को खंडित करने का प्रयास भी.

सरना-सनातन महासम्मेलन का आयोजन कर आदिवासी समेत पूरे दुनिया को भरमाने का प्रयास

ज्ञात हो, एक तरफ जब झारखण्ड समेत देश भर के आदिवासी समुदाय पृथक सरना धर्म कोड़ के आस में दिल्ली के तरफ टकटकी निगाह से देख रहे हैं. तो इस मानसिकता के थिंकटैंक के एजेंडों के अक्स में देश भर में मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन समेत तमाम आदिवासी व बहुजन वर्ग के थिंकटेंकों पर केन्द्रीय एजेंसियां लगातार हमलावर है. और आदिवासी इलाकों में जबरन सरना-सनातन महासम्मेलन का आयोजन कर आदिवासी समेत पूरे दुनिया को भरमाने का प्रयास हो रहा है. 

झारखण्ड जैसे आदिवासी बाहुल्य राज्य का दुर्भाग्य है कि इस मनुवादी मानसिकता के ऐसे कुत्सित एजेंडे को राज्य के विपक्ष के कई बड़े आदिवासी नेताओं का संरक्षण प्राप्त है. जो आदिवासी समुदाय के अस्तित्व संरक्षण के मद्देनजर मौकापरस्ती के पराकाष्ठा को दर्शा सकता है. लेकिन विधानसभा के पटल पर सीएम हेमन्त सोरेन के वक्तव्य में इसकी उपस्तिथि जरुर दिखी.

ऐसे में आदिवासी समुदाय को और अधिक ऊर्जा के साथ इसके काट में आगे कदम बना चाहिए. साथ ही देश भर के बहुजनो को भी एकता का परिचय देते हुए आदिवासी समुदाय को अधिकार दिलाने हेतु मजबूती से खडा हो चाहिए.

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