आखिर देश का 12 करोड़ आदिवासी कहां जाए? किससे गुहार लगाए? 

मणिपुर हिंसा: देश के आदिवासियों का मोदी-आरएसएस के नीतियों के अक्स में भारत देश से मार्मिक सवाल – आखिर देश का 12 करोड़ से अधिक आबादी कहाँ जाए. किससे गुहार लगाए. 

देश में मौजूदा मोदीपरस्त राजनीति के अक्स में भग‍तसिंह के उपलब्ध सम्‍पूर्ण दस्‍तावेज, पुस्तक, उनका लिखा-सोचा सब बेमायने हो चले हैं. वर्तमान मोदी राजनीति केवल भावना, भावुकता, उत्तेजना, भ्रम, गोदी मीडिया व सोशल मीडिया में परोसे गए झूठे इतिहास के आसरे सत्ता की दौड़ जी रहा है. जिसके अक्स में देश के सामने गरीब, दलित, आदिवासी, पिछड़ा व अल्पसंख्यक के प्रतीकों के आसरे बहुसंख्य महिला-पुरुष के हक-अधिकार का खुला हनन या लूट का सच सामने है.  

आखिर देश का 12 करोड़ आदिवासी कहां जाएं? किससे गुहार लगाए?

दलित अपने भागीदारी को लेकर, पिछड़ा जनगणना को लेकर, महिलायें 50 फीसदी आरक्षण को लेकर, अल्पसंख्यक लोकतांत्रिक देश में अपने अस्तित्व को लेकर. जानलेवा महंगाई के अक्स में सामान्य गरीब सांस लेने को लेकर, किसान ज़मीन बचाने को लेकर संघर्षरत है. तो वहीं देश का सबसे लाचार वर्ग आदिवासी न केवल अपनि पृथक पहचान को लेकर संघर्षरत है, मोदी-संघ के नीतियों के अक्स में विस्थापन और सुनियोजित हिंसा के सच को जी रहा है. झारखण्ड के आदिवासी सीएम हेमन्त सोरेन तक त्रस्त हैं.

पांच माह से जल रहा है देश का आदिवासी 

मोदी-संघ के ज़मीन लूट नीतियों के अक्स में देश का ख़ूबसूरत राज्य मणिपुर 5 महीनों से जल रहा है. और बदनामी का भार केवल बीजेपी के लिक्तान्त्रिक नेता और अंधभक्त ढो रहा है. बीजेपी मुख्यमंत्री पर पक्षपात का आरोप है. देश का प्रधानमन्त्री और गृहमंत्री कोरोना दौर के बंगाल चुनाव प्रचार की भांति, अपनी शाख बचने के अक्स में चुनावी प्रचार में व्यस्त है. मनिपुर में मोदी सरकार के प्रति अविश्वास के दरार इतनी बड़ी हो चुकी है कि कुछ लोगों ने वहां बीजेपी कार्यालय को ही जला दिया.

आरएसएस के सामन्ती नीतियों के अक्स में मणिपुर राज्य सैकड़ों हत्याएं, हजारों बेघर-विस्थापन, महिलाओं की नग्न परेड, हर पल खौफ के सच को जी रहा है. बच्चे शिक्षा से दूर हो चले हैं. हालांकि देश को शिक्षा से दूर करना आरएसएस की नीतियों में शामिल है. लेकिन बतौर लोकतांत्रिक भारत के प्रधानमंत्री, जिन्होंने संविधान की शपथ ली है. न वह उद्वेलित हैं और ना ही देश के इस त्रासदीय हालात से उन्हें कोई फर्क पड़ता दिखता है. वहीं दुनिया में देश का नाम खराब होने का सच सामने है.

इन्टरनेट खुलते ही देश को शर्मसार करने वाली तस्वीरों ने बीजेपी शासन में देश में इंटरनेट बंद करने की मंशा का पोल दी है. ऐसे में देश में महत्वपूर्ण सवाल यह खड़ा हो चला है कि क्या मोदी जी का गाल पर हाथ धरे रहने और सुप्रीम कोर्ट के दखल के बचाव में गाल बजाने से समस्या का समाधान हो सकता है? या मणिपुर के नकारा सीएम को बदलने से समस्या हल हो सकता है? इसमें बहुसंख्यक का क्या कसूर है? आखिर देश का 12 करोड़ आबादी कहां जाएं? किससे गुहार लगाए?

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