रांची : झारखण्ड का पूरा कैनवास आदिकाल से अधिकार व अतिथि सम्मान की रक्षा के प्रति समर्पित रहा है. यहाँ के धुल-कण तक में अपनी समाजिक, संस्कृतिक व अधिकार रक्षा को लेकर चेतना व्याप्त है. अतिथि सम्मान प्रदेश की संस्कृति ही नहीं जीवन शैली रही है. झारखण्डी संस्कृति में जहां जल-जंगल-ज़मीन की रक्षा मुख्य कड़ी है तो वहीं अतिथि सत्कार जैसी महान परम्परा भी पहचान है. यही कारण है कि राज्य को आन्दोलन की धरती कहा जाता है, तो वहीं विभिन्न सम्प्रदाय व स्थान के लोग झारखण्ड में आश्रय पाते रहे हैं. अतिथि सत्कार की यह झारखण्डी संस्कार प्रधानमंत्री के आगमन के दौरान भी स्पष्ट दिखी. जिसे देख पीएम भी मंत्रमुग्द हुए.
जहाँ एक तरफ देश के विभिन्न राज्यों में प्रधानमंत्री के आगमन में अव्यवस्था की चूक की खबरे आ रही है, वहीं झारखण्ड की संस्कृति ने देश भर में अतिथि सत्कार के मद्देनज़र अपनी अलग महान तस्वीर पेश की है. ज्ञात हो, लोकतंत्र के सम्मान में झारखण्ड मानसिकता के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के व्यक्तित्व में झारखंडी संस्कृति की छवि दिखी. जिसके अक्स में, विचारधारा में भिन्नता के बावजूद मुख्यमंत्री द्वारा न केवल स्वयं प्रधानमंत्री के स्वागत व्यवस्था की कमान संभाली गयी, उनका दिल खोल कर जोहार – अभिवादन किया भी किया गया. साथ ही झारखण्ड विकास हेतु केंद्र मदद मिलने की आशा जताई गयी.
वर्तमान राजनीतिक उथल-पुथल में भी सीएम हेमन्त नहीं छोड़ा झारखण्डी संस्कार का दामन
जाहिर है देश के वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में जहां गैर भाजपा शासित राज्यों में प्रधानमंत्री आगमन को एक राजनीतिक उथल-पुथल के रूप देखा जा रहा है. कई राज्य में इसके स्पष्ट उदाहरण भी देखने को मिली है. वहां मुख्यमंत्री द्वारा अपनी झारखण्डी संस्कार से समझौता न करना, और प्रधानमन्त्री का खुले बांहों से स्वागत करना न केवल प्रधानमन्त्री को अभिभूत व मंत्रमुग्द कर गया, देश भर में हेमन्त सोरेन बड़े दिल वाला जन नेता भी बना गया है. यह गंगा-जमुनी संस्कृति न केवल झारखण्ड की, देश की मूल धरोहर है. जिसकी दुनिया कायल है.