पारसनाथ : राजनीति केंद्र की -ताक पर देश के दो मूल सम्प्रदाय की विचारधारा

झारखण्ड : केन्द्रीय गुजरात लॉबी के नीतियों ने पारसनाथ के जड़ में जहर बोया. लेकिन देश के दो मूल सम्प्रदाय आपस में लड़ अपने महापुरुषों के मूल विचारों का कर रहे सत्यानाश. दोनों के अस्तित्व को प्रेम और शांति के राह से ही बचाया जा सकता है.

रांची : पारसनाथ अपने गोद में प्रेम-शान्ति को स्थान देने के ऐतिहासिक सच के साथ अडिग खड़ा है. साथ ही सामंतियों को मुंहतोड़ जवाब देने वाले मानवता को अपने गोद में स्थान देने के एतहासिक सच लिए खड़ा है. पारसनाथ का दिचास्प पहलू है कि एक सम्प्रदाय धार्मिक आस्था के अक्स में वस्त्र त्याग प्राकृत रूप लिया है तो दूसरा समुदाय केन्द्रीय नीतियों से उपजी गरीब के अक्स में, वस्त्र की कमी में प्राकृत रूप लेने को विवश है. 

पारसनाथ विवाद : राजनीति केंद्र की -ताक पर देश के दो मूल सम्प्रदाय की विचारधारा

लेकिन पारसनाथ के प्राकृत प्रेम में जहर पूर्व की सत्ता व गुजरात लॉबी के गठबंधन ने घोली है. एक तरफ जैन आस्था के केंद्र को पर्यटन स्थल घोषित करने की शाजिश हुई. तो दूसरी तरफ CNT/SPT एक्ट को ख़त्म करने की. केंद्र के इशारे पर वहां गुजरात लॉबी की कोठियां बनी तो सरकारी पट्टा पर बसे आदिवासी-मूलवासी को उजाड़ाने का खेल उसी पूर्व सत्ता ने खेला. साथ ही बास्के मर्डर प्रकरण तले जैन समाज के विरुद्ध आदिवासी समुदाय में रोष पनपाया गया.

पारसनाथ विवाद मामले में जैन समुदाय की बड़ी चुक 

जैन समुदाय को बताना चाहिए कि आखिर क्या मजबूरी थी कि वह यह मामला वर्ष 2019 में उठाना कैसे भूल गए? और 2023 में उठाया भी तो इत्तेफाक़न कैसे वह आवेदन में मरांग बुरु का जिक्र करना भूल गए. ऐसे में जैन समुदाय के बौधिक पराकाष्ठ के अक्स में आदिवासी- मूलवासी में उसके अस्तित्व को लेकर संदेह ने जन्म लिया. जिसका फायदा विपक्ष ने राज्य के युवाओं व आदिवासी समुदाय को भ्रमित कर उठाया. वर्तमान में कई उदाहरण है कौन विचारधारा रहन-सहन-पहनावा व खान-पान-जाति-धर्म के आसरे राजनीति करता है.

वर्तमान में जब 1932 खतियान आधारित स्थानीयता, सरना धर्म कोड बिल हेमन्त सरकार ने पारित कर केंद्र भेजा है. जब इस पर सीएम सोरेन द्वारा स्पष्ट कहा गया है कि 1932 बेस लाइन है और कोई भी झारखण्डी व विस्थापित सर्वे के कारण स्थानीयता से दरकिनार नहीं होगा. फिर भी, गृहमंत्री के द्वारा चाईबासा में 1964 सर्वे के आसरे 1932 स्थानीयता को खारिज करना और झटके में पारसनाथ में दो मूल सम्प्रदायों को उकसाया जाना, केन्द्रीय राजनीति का हिस्सा है.

बहरहाल, दोनों सम्प्रदाय को एक दुसरे के खिलाफ अपनी ऊर्जा बर्बाद करने के बजाय मूल तथ्य को समझना होगा. दोनों समुदाय को फिर से प्रेम व शांति के शरण में जाना होगा. तभी उन्हें सच का पता चलेगा कि दोनों का अस्तित्व उनके पूर्वज एक दुसरे से जोड़कर परिनिर्वाण लिए हैं. और यह भी पता चलेगा कि दोनों समुदाय के पीठ पर किसने छुरा घोपा है.  

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