झारखण्ड : नकली पुरुषोतम ने कल्पना भी नहीं की होगी कि उसके तानाशाही मर्यादा के चिलमन को महज तीन महीने में आदिवासी शक्ति की प्रतीक कल्पना सोरेन आईना दिखायेगी.
रांची : नारी सृजन करती है इसलिए उसकी शक्तियां अपरम्पार है, उसकी चुप्पी उसकी कमजोरी नहीं ममत्व का ही एक रूप है. लेकिन जब उसके सृजित संसार पर संकट मडराता है तो वह सभी बाधाओं को लांघ उस संकट को ज़मीन दिखा बतलाती है कि उसका भी सृजन उसी से हुआ है. झारखण्ड की आदिवासी महिला शक्ति ‘कल्पना सोरेन’ तथ्य का स्पष्ट उदाहरण है. महज 4 मार्च से राजनीति जीवन में इस महिला नेत्री को इतिहास और भविष्य दोनों ही जगह देने को आतुर दिख चला है.
कल्पना सोरेन ने न केवल बीजेपी को बैकफूट पर धकेला, नकली पुरुषोतम के तानशाही मर्यादा की स्पष्ट तस्वीर भी जनता के समक्ष यथावत रखी. नतीजतन, झारखण्ड समेत देश भर के आदिवासी – दलित चरण दर चरण तानाशाह से दूर होते दिखे. उनकी उपस्थिति ऐतिहासिक रूप से पारखी रही. झारखण्ड राज्य के मजबूत आवाजों को प्रत्याशी के रूप में जगह मिली. और वह इनके पक्ष में प्रचार करती भी दिखीं ताकि वह आवाजें झारखण्ड के मांगों के पक्ष में संसद में जोर से गूंजे.
झारखण्ड के इतिहास मे पहला मौक़ा है, इंडिया गठबंधन ने कल्पना सोरेन समेत जोबा मांझी, यशस्विनी सहाय, अनुपमा सिंह, ममता भुइयां के रूप 5 महिलाओं को प्रत्याशी के रूप राजनीति में जगह मिली. और भारी संख्या में महिला नेतृत्व का उभार झारखण्ड के पक्ष में स्पष्ट रूप से हुआ. जो सामन्तवाद के पुरुषवादी मानसिकता को बड़ा झटका है. जाहिर है विकास के मद्देनजर इस मानवीय बदलाव का सकारात्मक प्रभाव भविष्य में झारखण्ड की राजनीति में देखने को मिलेगा. क्या यह नवीन सृजन के संकेत नहीं?