सिया के राम लोकतांत्रिक समझ का आरंभ तो सामंत का राम अंत 

सिया के राम शिष्टाचार हैं, सामाजिक, आर्थिक, राजनितिक व्यथा पर होने वाली लोकतान्त्रिक चचर्चाओं का आरंभिक जुबान हैं, जबकि एकल, तानाशाह और अशांत सामंती राम सिया के राम का संहारक.

रांची : भारतीय समाज में अनेक राम हैं, बोधिसत्व राम, निगंठ राम, कबीर के राम, बाल्मीक राम,  तुलसी राम, सियाराम. लेकिन जनमानस में रचने-बसने वाले केवल सिया के राम हैं. ब्रह्म दर्शन के अनुसार जीवन का अस्तिव जोड़े में ही संभव है. और बुद्ध दर्शन के अनुसार जोड़ों के वैचारिक मध्यम बिंदु ही जीवन का बौधिक सार है. शायद सिया-राम इसी सत्य को परिभाषित करते हैं इसीलिए वह जनमानस के रोम-रोम में शिष्टाचार बन बसते हैं और सभ्यता विस्तार का प्रारंभ होते हैं.

सिया के राम लोकतांत्रिक समझ का आरंभ

सामंती राम का नारी सम्मान से परे सत्ता लोभ में अश्वमेघ घोड़े के साथ सरयू की ओर प्रस्थान 

उत्तरकाण्ड रूपी आठवीं पोड़ी को छोड़ दें तो रामायण कथा महिला सम्मान के प्रति समर्पित है. सिया स्वयंवर के मानक को पूरा कर प्रभु राम महिला सम्मान को मान देते हैं. माँ की दुविधा को सम्मान दे वनवासी होते हैं. आदिवासी सबरी के अतिथि सम्मान को मान देते है. रावण भी सिया हरण बहन के खातिर करता है. राम सामंतवाद के दस चेहरों पर्दाफास कर या सिरों को जीरा सिया के विश्वास को मान रखता है.

वहीं, सामंती राम महिला सम्मान से परे सत्ता लोभ में अशांत अश्वमेघ घोड़ा हांकते ही नहीं दिखता, जनता को महंगाई, बेरोजगारी, भीडतंत्र जैसे त्रासदी में उलझा सरयू तट की ओर जाता दिखता है. विभीषण का जन्म केवल लोभवश ही नहीं वैचारिक द्वंद्ध के बीच नई मानवीय सृजन सोच के लिए भी होता है. मसलन, नई सृजन के मद्देनजर सामन्ती राम ने कई विभीषण को जन्म दे उससे हारता दिखता है.

22 जनवरी -हेमन्त सरकार में बेरोजगारों को नियुक्ति सामंती दरवार में केवल इवेंट

वैसे राजनीति जद्दोजहद के बीच निर्माणधीन मंदिर में 22 जनवरी 2023 प्रभु राम अयोध्या पधारे. लेकिन दिन कोई भी हो सियाराम तो घट-घट वासी हैं. जनता की सोच थी इस ऐतिहासिक दिवस के दिन उन्हें बेरोजगारी, गरीबी, महंगाई जैसे समस्याओं से मुक्ति मिलेगी. केवल झारखंड की हेमन्त सरकार में ही बेरोजगारों को नियुक्ति मिली. और सामंतवाद के दरवार में एकल किरदार के द्वारा जनमानस को केवल राजनीतिक इवेंट दिखाने का सच ही अंकित हुआ.

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