10 सालों तक सरकार के साथ मिलकर डॉक्टर के रूप में काम करने वाले मेडिकल छात्रों के लिए राज्य के पीजी मेडिकल सीटों में 15%आरक्षण का प्रावधान
झारखण्ड की हेमंत सरकार का ग्रामीणों तक चिकित्सा सुविधा पहुंचाने की पहल मानवता की परिपाटी पर खरा उतरता दिखता है। जहाँ पहली बार किसी सरकार द्वारा स्थानीय स्तर पर चिकित्सा सेवाएँ पहुंचाने की ठोस पहल हुई है। मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने बड़ा निर्णय लेते हुए गाँवों के स्वास्थ्य उप केंद्रों को उसके मायने देने की कार्य प्रक्रिया शुरु की है। जिसके तहत अब सरकारी चिकित्सकों को ग्रामीण क्षेत्रों में तीन साल की सेवाएं देना अनिवार्य होगा। और राज्य में मेडिकल की पढ़ाई करनेवाले छात्रों को बांड भरकर यह बताना होगा कि वे अपनी तीन साल की सेवाएं गांवों में देंगे। जिससे सरकारी डॉक्टरों की ग्रामीण जनता के प्रति प्रतिबद्धता भी सुनिश्चित होगा।
मुख्यमंत्री श्री सोरेन का यह कदम सीएचसी और पीएचसी में सरकारी डॉक्टरों की उपलब्धता सुनिश्चित करेगा। जिससे राज्यवासियों को चिकित्सा के लिए भविष्य में दूसरे जिले की ओर रुख नहीं करना पड़ेगा। ज्ञात हो कि पूर्वत भाजपा के 14 वर्ष के शासन में गाँवों के स्वास्थ्य उपकेन्द्रों की स्थिति जर्जर रही है। लेकिन, जहाँ स्वास्थ्य उपकेन्द्रों में ताले लटकते दिखते थे, वहां हेमंत सरकार इस कदम से डॉक्टर सेवा दे अपना धर्म निभाते दिखेंगे। और ग्रामीणों का स्थानीय स्तर पर इलाज मुहैया होगा, जिससे राज्य के ग़रीबों को अब बेहतर इलाज के लिए खेत-बारी नहीं बेचना पड़ेगा।
पीजी मेडिकल सीटों में पंद्रह प्रतिशत का आरक्षण का प्रावधान
हेमन्त सरकार के प्रस्ताव में साफ़ जिक्र है कि जो मेडिकल छात्र 10 सालों तक डॉक्टर के रूप में सरकार के साथ मिलकर काम करेंगे, उन के लिए राज्य के पीजी मेडिकल सीटों में पंद्रह प्रतिशत का आरक्षण का प्रावधान होगा। वहीं बांड भरने के बाद यदि कोई छात्र नियमों का उल्लंघन करता है, तो वैसे छात्रों को बीस लाख से लेकर पचास लाख रुपए तक जुर्माना देना पड़ सकता है।
जाहिर है हेमंत सरकार का फैसला झारखंडी जनता को समर्पित हो सकता है। क्योंकि सरकार के इस दूरगामी फैसले से झारखण्ड में गांव से लेकर शहरों तक के सरकारी चिकित्सा व्यवस्था को मजबूती मिलेगी। और निश्चित रूप से चिकित्सा के क्षेत्र में सकारात्मक व व्यापक बदलाव सुनिश्चित करेगा।