संघी मानसिकता के चक्रव्यूह में हेमंत सरकार का बेहतर शिक्षा की कवायद के मायने, बुद्धिजीवियों के इस्तीफे के सच से समझे

संघी मानसिकता के बीच हेमंत सरकार का शिक्षा के बेहतरी को लेकर कवायद प्रताप भानु मेहता, प्रदीप सुब्रमण्यम जैसे बुद्धिजीवियों के इस्तीफे के सच से समझा जा सकता है

वाजपेयी की सरकार में देश की उच्च शिक्षा को खुले बाजार में लाने का पहला सच। नरेन्द्र मोदी जनादेश की ताकत में यूजीसी तेजी से निर्णय लेने लगे। लेकिन मोदी सरकार के दबाव में यूजीसी के उन फैसलों का सच उसकी अपनी स्वायत्तता और जनता के बीच उसके भरोसे पर हमला हो। मोदी सरकार के फैसले लोकलुभावन तो हो। लेकिन पूंजी के दबाव में खुले तौर पर उच्च शिक्षा में किये जाने वाले बदलाव, देश की साख को खत्म करने की शुरुआत का सच लिए हो। जहां देश के कैनवास में संघ के लिए मानव संसाधन मंत्रालय अति महत्वपूर्ण हो जाए। जिसके अक्स में आंबेडकर की आरक्षण नीति को खारिज कर दिए जाए। तो मानसिकता का सच समझा जा सकता है। 

जहाँ डीयू-जेएनयू में पढने वाले किसान-गरीब परिवार के छात्र, अभिव्यक्ति के सवाल से होते हुये देशभक्ति या देशद्रोह से जा जुड़े। जहां वह मानसिकता सड़क पर उतरे छात्र विचारों की स्वतंत्रता को अपने विचारधारा के पैमाने से मापे। जहाँ वह मानसिकता आगे निकल प्राइवेट यूनिवर्सिटी पर असर डालने लगे। जिसके अक्स में प्रताप भानु मेहता, प्रदीप सुब्रमण्यम जैसे बुद्धिजीवियों के इस्तीफे का सच अशोका यूनिवर्सिटी के फैकल्टी-छात्र अभिव्यक्ति के मद्देनजर पत्र लिख उभारे। तो AICTE के नियम बिना मैथ-फिजिक्स पढ़े छात्रों का इंजीनियरिंग में दाखिला के रूप में। उस मानसिकता के शिक्षा केवल धन कमाने का जरिया का सच उभार सकता है। 

झारखंड की शिक्षा व्यवस्था को सुधारने की उनकी कवायद का सच

ऐसे में झारखंड जैसे आदिवासी-मूलवासी बाहुल्य राज्य में, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का शैक्षणिक संस्थानों की स्थिति को लेकर केंद्रीय व पिछली भाजपा सत्ता पर आरोप की हकीकत को समझा जा सकता है और नयी केन्द्रीय शिक्षा नीति पर उठाए गए सवाल भी। और झारखंड की शिक्षा व्यवस्था को सुधारने की उनकी कवायद का सच भी। और शिक्षा को रोजगारन्मुखी बनाने के लिए खीची गयी बड़ी लकीर को भी। जिसके अक्स में आदिवासी प्रतिभा को विदेशों के यूनिवर्सिटी में भेजने का प्रयास भी इसी कड़ी का हिस्सा भर है। जो लकीर भविष्य में दलित-दमित छात्रों के भविष्य से होकर भी गुजरेगी, मुख्यमंत्री ने संकेत भी दे दिए हैं। 

आदिवासी, दलित, पिछड़े, किसान-मजदूर वर्ग के बच्चे कहाँ जायेंगे 

मसलन, झारखंडी बच्चों के हित में मुख्यमंत्री ने मोदी सरकार की ‘नयी शिक्षा नीति’  को गलत बताने में परहेज नहीं करना। उनका कहना कि ऐसी नीति देश में निजीकरण और व्यापार को बढ़ावा देगी। निजी और विदेशी संस्थानों को आमंत्रित करने की बात पर नाराजगी जताना। और आदिवासी, दलित, पिछड़े, किसान-मजदूर वर्ग के बच्चों के हितों की रक्षा के मद्देनजर, सवाल उठाना कि 70-80 प्रतिशत के बीच की जनसंख्या वाले बड़े वर्ग के गरीब बच्चे कैसे लाखों-करोड़ों की फीस दे पायेंगे? उस मानसिकता की सत्यता को उभारता है। 

शिक्षा के बेहतरी में हेमंत सरकार के पहल 

  • हेमंत सोरेन ने पिछली सरकार में बंद हुए स्कूलों को न केवल फिर से खोलने की पहल की। 5000 विद्यालयों को शिक्षक-छात्र अनुपात, प्रशिक्षक सहित खेल मैदान, पुस्तकालय आदि सभी सुविधाओं से युक्त करते हुए सोबरन मांझी आदर्श विद्यालय के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया।
  • 12 सितंबर 2020 को उच्च, तकनीकी शिक्षा एवं कौशल विकास विभाग के नीतिगत विषयों की समीक्षा करते हुए उच्च शिक्षा में गुणात्मक सुधार तथा क्वालिटी एजुकेशन देने को प्राथमिकता बनायी। 
  • राज्य के अधिकांश विश्वविद्यालयों में रिक्त 2030 पद और 4181 अतिरिक्त पद को भरने के लिए विभाग निर्देश दिए। बीआईटी सिंदरी को तकनीकी संस्थान और नवनिर्मित इंजीनियरिंग महाविद्यालयों और पॉलीटेक्निक संस्थानों को मल्टी डिसीप्लिनरी संस्थान के रूप में विकसित करने पर भी जोर दिया।
  •  केन्द्रीय शिक्षा व्यवस्था को देख मुख्यमंत्री ने पहले ही घोषणा कर दी थी कि राज्य की शिक्षा व्यवस्था को दिल्ली से भी बेहतर बनाएंगे। पिछले साल के बजट के मुकाबले शिक्षा में करीब 2 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोतरी कर इस ओर कदम बढ़ाया।

झारखंड ओपन यूनिवर्सिटी, ट्राइबल यूनिवर्सिटी, खेल यूनिवर्सिटी जैसे बड़ी लकीर उनके द्वारा खीची गयी है। साथ ही टेट सर्टिफिकेट की मान्यता को दो साल बढ़ाना। शिक्षा के मुनाफे की संस्कृति के उस मानसिकता पर जोरदार प्रहार माना जा सकता है।

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